गर्भावस्था में पित्त की पथरी का दर्द उठने पर क्या करें ? दवाइयां या ऑपरेशन ?
क्या गर्भावस्था चालू रख सकते हैं ?
स्टोन्स के कारण क्या महिलाओं की गर्भ धारण करने की क्षमता पर कोई प्रभाव पड़ता है ?
पित्त की थैली में पथरी आजकल एक सामान्य बीमारी हो गयी है। हर घर में कोई न कोई इससे पीड़ित जरूर मिल जाता है। सामान्यतः अधिक वजन की लगभग चालीस वर्ष की स्त्रियां जो गर्भ धारण करने योग्य हैं उनमें यह बीमारी ज्यादा पायी जाती हैं।
गॉलब्लेडर की अधिकतर पथरियां कोलेस्ट्रॉल से निर्मित होती हैं। गलत जीवन यापन, अधिक चिकनाई युक्त खाना तथा नियमित कसरत ना करने से इनके बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। गर्भावस्था में तो गॉलब्लेडर स्टोन बनने की संभावनाएं और भी ज्यादा हो जाती हैं।
आज में आपसे बात करूँगा कि गर्भावस्था में पथरी मालूम चलने पर हमें क्या करना चाहिए।
पथरी या स्टोन्स गर्भ ठहरने से पहले भी महिला को हो सकते हैं। स्टोन्स के कारण महिलाओं की गर्भ धारण करने की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। स्टोन्स के इलाज पर भी इसका कोई अंतर नहीं पड़ता है की पथरी पहले से है या नयी बनी है।
पथरी के लक्षण
पथरी के कारण मरीज को बदहजमी, गैस बनना, पेट फूलना, पेट में दर्द होना, असहनीय दर्द, उल्टी, उबकाई आना, खट्टी डकार आना ,एसिडिटी होना तथा ज्यादा पसीना आना हो सकता है।
अल्ट्रासाउंड द्वारा हम आसानी से इन स्टोन्स का पता चला सकते हैं। अल्ट्रासाउंड का बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता है।
अगर हमें ये पता हो कि महिला स्टोन्स से पीड़ित है तो गर्भ धारण करने से पहले उसका गॉलब्लेडर का ऑपरेशन करवा देना चाहिए। आजकल दूरबीन से गॉलब्लेडर का ऑपरेशन सहजता से संभव है। क्योंकि गर्भावस्था में कभी भी इसका दर्द उठ सकता है और उस समय इसके इलाज तथा ऑपरेशन में कहीं ज्यादा जोखिम होते हैं। ऑपरेशन तो हरहाल में होना ही है क्योंकि एक बार पथरी बनने पर ऑपरेशन ही इसका एकमात्र विकल्प है। इसलिए गर्भ धारण करने से पूर्व ही ऑपरेशन करवाना एक समझदारी भरा निर्णय है।
लगभग 8 प्रतिशत महिलाओं में नवें महीने तक नयी पथरियां बन जाती हैं। लेकिन केवल 1 प्रतिशत महिलाओं में पथरी के कारण पेट दर्द या अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
नयी पथरी बनने के कुछ रिस्क फैक्टर्स होते हैं जिनके होने पर पथरी बनने के संभावनाएं ज्यादा होती हैं, जैसे - मोटापा, अधिक बच्चे होना, अधिक उम्र का होना, आनुवंशिक प्रवृतियां आदि।
गर्भावस्था में महिला में हॉर्मोन्स बढ़ जाते हैं। गर्भावस्था में मुख्यता दो प्रकार के हॉर्मोन मिलते हैं- एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन।
एस्ट्रोजन के कारण कोलेस्टेरोल का स्राव शरीर में अधिक होता है। इसके कारण पथरी बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
प्रोजेस्टेरोन लिवर में बाइल एसिड का स्राव कम कर देता है। बाइल एसिड कोलेस्ट्रॉल को घुलनशील बना कर शरीर से बाहर निकालता है। बाइल एसिड कम बनने से पित्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है तथा नए स्टोन बन सकते हैं। प्रोजेस्टेरोन गॉलब्लेडर का संकुचन भी सुस्त कर देता है। इस कारण इसके अंदर एकत्रित पित्त भरे भरे गाढ़ा होता जाता है, जम जाता है और स्टोन्स बन जाते हैं।
पूरी गर्भावस्था में, खास तौर से पहले तीन महीनों में स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल किया जाता है। इस समय इसके ऑपरेशन की सलाह नहीं दी जाती है। ऑपरेशन गर्भ में पनप रहे बच्चे के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है। इस समय ऑपरेशन करने पर या तो गर्भपात हो सकता है या बच्चे पर दवाइयों का दुष्प्रभाव भी हो सकता है।
गर्भावस्था के बीच के तीन महीनों में ऑपरेशन करना सुरक्षित रहता है।स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल करना चाहिए। सर्जन और परिवार मिलकर ऑपरेशन के फैसले को ले सकते हैं। दूरबीन का ऑपरेशन ही ज्यादा सुरछित रहता है।
गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में ऑपरेशन करना बेहद जोखिम भरा होता है क्योंकि पेट में ऑपरेशन के लायक जगह ही नहीं बचती है। स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल करना चाहिए।
किसी भी समय अगर इमरजेंसी हो तो हमें ऑपरेशन करना पड़ता है लेकिन मरीज और उसके परिवार को सभी खतरों को समझना चाहिए।
अगर गर्भावस्था में ऑपरेशन नहीं किया गया है तो बच्चा होने के 6 हफ्ते बाद दूरबीन द्वारा ऑपरेशन की मैं सलाह देता हूँ। किसी भी हालत में पुनः गर्भधारण से पहले तो हमें ऑपरेशन करवा ही लेना चाहिए।
पथरी के इलाज के समय हमें सर्जन तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ दोनों की सलाह मान कर चलना चाहिए।
गॉलब्लेडर के स्टोन्स के मरीजों के लिए क्या डाइट उचित है जानने के लिए मेरी ये वीडियो देखिये -