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मूली का प्रयोग बवासीर के लिए सदियों से होता आ रहा है। मूली के प्रयोग से हम पाइल्स या बवासीर से जल्द छुटकारा पा सकते हैं।
मूली हमारे पेट के पाचन के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन मूली खुद नहीं पचती है, उसको पचाने के लिए हमें उसके पत्ते खाने चाहिए। चूँकि पत्ते सालभर नहीं मिलते हैं उन्हें हम सुखाकर रख सकते हैं तथा उसका पाउडर जरुरत पड़ने पर खा सकते हैं।
सुबह खाली पेट आधा कप मूली का रस हमें लेना चाहिए । रस में स्वादानुसार सेंधा नमक, भुना जीरा तथा नीबू का रस मिला सकते हैं। रस पीने के बाद उसके गूदे में शहद मिलाकर सूजे हुए बवासीर के मस्सों पर लगा सकते हैं।
मूली तथा उसके पत्तों को हम सलाद की तरह तथा सब्जी बना कर भी ले सकते हैं
मूली में raphanin, glucosilinates तथा विटामिन c होता है जो दर्द सूजन एवं खुजली कम करने में सहायक होता है। इसके वोलेटाइल ऑयल्स भी सूजन कम करते हैं।
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लेजर द्वारा बवासीर पाइल्स का इलाज हमें क्यों करना चाहिए ?
Why treatment by laser is recommended for most patients of Haemorrhoids?
नवीन वैज्ञानिक शोधों के अनुसार बवासीर वास्तव में कुशंस हैं, जो गुदा मार्ग को कसकर बंद रखते हैं तथा हवा, पाद, पानी, मल आदि को बिना दिमाग के संकेत के बाहर नहीं आने देते हैं। जब यह कुशंस ढीले पड़ जाते हैं, लटकने लगते हैं, तो इनके अंदर रक्त वाहिकायें बन जाती हैं। रगड़ लगने पर इन ऊतकों से खून रिसता है या अत्यधिक सूजन आ जाती है। पुरानी धारणाओं के विपरीत यह खून धार से धमनियों (artery ) से बहुत तीव्र गति से निकलता है। सफेद कमोड पर सुर्ख लाल रंग देखकर मरीज को चक्कर भी आने लगते हैं।
लेजर द्वारा पाइल्स अथवा बवासीर का उपचार आजकल सफलतापूर्वक किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों से इसका प्रचलन काफी अधिक हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके परिणाम बहुत ही उत्साहवर्धक है।
लेजर द्वारा बवासीर का इलाज आधुनिकतम इलाज है। भारतवर्ष में है कुछ ही अस्पतालों में इसकी सुविधा अभी उपलब्ध है।
अब मैं आपसे लेजर सर्जरी के प्रमुख फायदों की चर्चा करूंगा
1 आधुनिकतम इलाज
जैसे मैंने ऊपर लिखा यह पाइल्स के लिए आधुनिकतम इलाज है। किसी भी प्रामाणिक विधि के बारे में हम प्रकाशित शोधों से अपनी जानकारी लेते हैं। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार लेजर के परिणाम बेहद अच्छे हैं, बहुत लंबे समय तक बने रहते हैं।
लेजर की मशीन अभी भारतवर्ष में नहीं बन रही है। मैंने भी अपनी मशीन इजराइल से मंगाई है।
2 कोई चीरफाड नहीं
'लेजर सर्जरी' शब्द के बावजूद इसमें कोई भी चीर फाड़ नहीं की जाती है। किसी प्रकार का चीरा नहीं लगाया जाता है। सिर्फ एक पतला सा लेजर का धागा हमें बवासीर के मस्सों से छुटकारा दिला देता है।
3 अत्यधिक रक्तस्राव नहीं
क्योंकि किसी प्रकार का चीरा हम नहीं लगा रहे हैं इस कारण किसी भी प्रकार का खून नहीं बहता है। आम बवासीर की सर्जरी में हमें गुदा मार्ग को बहुत जगह से काटना पड़ता है, इस कारण रक्त स्राव बहुत होता है। यह रक्त स्रावऑपरेशन के पश्चात भी बहुत दिनों तक होता ही रहता है।
4 गुदा मार्ग संकुचन नहीं होना ( Less Surgical Complications )
क्योंकि ऑपरेशन के दौरान गुदा मार्ग को हमें काटना पड़ता है, घाव भरते समय यह सिकुड़ता है, इस कारण कई बार गुदा मार्ग संकुचित हो जाता है Anal Stenosis ज्यादा संकुचित होने पर उसका भी ऑपरेशन करना पड़ सकता है।
5 दर्द
क्योंकि हम किसी भी प्रकार की चीर फाड़ नहीं कर रहे हैं इसलिए गुदा मार्ग में किसी भी प्रकार का दर्द नहीं होता है। सामान्य ऑपरेशन के बाद कुछ हफ्तों तक मरीज को दर्द बना रहता है तथा उसे दर्द की दवाइयां नियमित रूप से खानी पड़ती है।
6 लेजर में कम समय लगना
सामान्य ऑपरेशन में लगभग 1 घंटा समय लगता है। लेजर द्वारा सभी कार्य आधे घंटे से भी कम समय में किया जा सकता है। कम समय लगने के कारण मरीज को जल्दी से स्वास्थ्य लाभ होता है।
7 घाव को जल्दी से भरना
सामान्य ऑपरेशन में बवासीर का घाव भरने में हफ्तों लगते हैं। लेजर में हम चूंकि कोई चीर फाड़ नहीं करते हैं मरीज जल्दी से स्वस्थ हो जाता है।
8 अन्य उतको पर कोई दुष्प्रभाव नहीं
लेजर का प्रभाव बहुत गहरा नहीं होता है। यह केवल उसी हिस्से में कार्य करती है जहां इसका उपयोग किया जाता है। इसके विपरीत सामान्य ऑपरेशन में कई बार अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंच सकता है। यदि गुदा के चारों तरफ लिपटी मांसपेशियां कट जाती हैं तो शरीर की पाद एवं मल रोकने की क्षमता घट जाती है।
9 सुनिश्चितता
लेजर सुनिश्चितता से केवल बवासीर को ठीक करता है, आसपास के ऊतकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। यह इसका बहुत ही बड़ा पॉजिटिव प्वाइंट है।
10 इंफेक्शन का ना होना
चीर फाड़ के ना होने के कारण लेजर में किसी प्रकार के इंफेक्शन, सेप्टिक या मवाद पड़ने की उम्मीद नहीं होती है।
सामान्य ऑपरेशन में इन्फेक्शन होना एक आम बात है इस कारण मरीज को बहुत दिनों तक एंटीबायोटिक्स खाने पड़ते हैं।
11 कार्य पर शीघ्र वापसी
लेजर द्वारा मरीज को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है तथा वह बहुत जल्दी अपने कार्य अथवा नौकरी पर वापस जा सकता है। यह प्लेजर का अत्यधिक महत्वपूर्ण पॉजिटिव प्वाइंट है।
12 डॉक्टर की क्लीनिक पर बार-बार नहीं जाना पड़ता
लेसर के मरीज को डॉक्टर के पास बार-बार आने की जरूरत नहीं होती है।
13 मरीजों द्वारा लेजर को सफलतापूर्वक अपनाना
उपरोक्त सभी कारणों के कारण मरीजों द्वारा लेजर को सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है।
आगरा और आगरा के आसपास के मरीजों का मेरे द्वारा लेजर से इलाज किया जा रहा है जो बहुत ही उत्साहवर्धक है।
कृपया एक प्रॉक्टोलॉजिस्ट या गुदा मार्ग रोग विशेषज्ञ से आज ही परीक्षण करवा कर यह सुनिश्चित करें कि क्या आप का इलाज लेजर से संभव है
यदि हां तो फिर सोचने की जरूरत नहीं है।
No piles only smiles
अगर आप मुझसे कुछ पूछना चाहे तो मुझे 9837144287 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
आप मुझे ईमेल भी कर सकते हैं मेरा ईमेल एड्रेस है puneet265@gmail.com
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बवासीर होने के प्रमुख कारण तथा उनसे बचाव
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डॉ पुनीत अग्रवाल
खूनी और वादी बवासीर तथा बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय। बवासीर का रामबाड आयुर्वेदिक इलाज बवासीर के लक्षण उपचार
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बवासीर हिंदी में और इंग्लिश में पाइल्स तथा आयुर्वेद में अर्श बोलते हैं
प्रकृति ने हमारी गुदा के अंदर मुलायम ऊतकों के तीन उभार - कुशन बनाये हैं। ये उभार हमारी गुदा का रास्ता अंदर से कस कर बंद रखते हैं तथा वक्त बेवक्त पाद या मल को बाहर नहीं निकलने देतें है । जब हम शौचालय में होते हैं तब ये उभार ढीले हो जाते हैं तथा वायु, पाद, मल आदि को बाहर निकलने देते हैं। जब यह ऊतक सही प्रकार से कार्य नहीं करते हैं या उनकी संरचना में परिवर्तन आ जाता है तब बवासीर अथवा पाइल्स बनना प्रारंभ हो जाते हैं।
कहने सुनने में बवासीर एक साधारण बीमारी लगती है। लेकिन कभी कभी ये भयानक रूप ले लेती है, और जानलेवा साबित होती है। समय रहते इससे बचाव करना अत्यंत आवश्यक है।
यहाँ पर मैं बवासीर के कुछ प्रमुख कारण बता रहा हूँ। साथ में ये भी बता रहा हूँ कि उनसे कैसे बचा जाये। एक बार बवासीर होने पर इन सावधानियों का और ज्यादा अमल में लाना चाहिये।
बवासीर होने के प्रमुख कारण
१ कब्ज या लंबे समय तक दस्तों का लगे रहना
२ आनुवांशिक
३ खाने में रेशे की कमी होना
४ शरीर का अधिक वजन होना, मोटापा
५ गर्भावस्था
६ हाईली प्रोसेस फूड को अधिक खाना
७ वह लोग जो बहुत देर तक एक ही जगह पर बैठे या खड़े रहते हैं
८ शौच के समय अधिक जोर लगाना
९ शौच में कमोड के ऊपर अधिक समय बिताना
कब्ज
बवासीर होने का सबसे प्रमुख कारण है कब्ज। यदि हमें लंबे समय तक कब्ज बना रहता है तो हमारी आंतों को शौच करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, बहुत जोर लगाना पड़ता है। जोर लगाने के कारण गुदा मार्ग के उभार प्रभावित होते हैं। वह ढीले पड़ने लगते हैं। उनमें नई रक्त वाहिनियां उत्पन्न हो जाती हैं। ज्यादा ढीले पड़ने पर ये उभार गुदामार्ग से शौच के समय बाहर भी आने लगते हैं। आकार ज्यादा होने पर मरीज को अपनी उँगलियों से उन्हें अंदर करना पड़ता है। इनके अंदर की रक्त वाहिनियाँ घर्षण के कारण फट जाती हैं तथा उनमें से रक्त भी आने लगता है। यह रक्त सुर्ख लाल रंग का होता है तथा धार एवं बूंद-बूंद करके बाहर आता है। सुर्ख लाल रंग होने के कारण यह अत्यंत भयानक दिखता है
इसके अतिरिक्त मरीज खुजली का अनुभव भी कर सकता है। कभी-कभी सफेद पानी जैसा चिपचिपा तरल पदार्थ भी मरीज को गुदाद्वार पर महसूस हो सकता है। इसे आंव या म्यूकस भी कहते हैं। ये भी बवासीर से ही रिसता है।
बवासीर में हमारी जीवन शैली तथा खान-पान का विशेष प्रभाव पड़ता है।अपनी दैनिक दिनचर्या तथा जीवन शैली में छोटे छोटे परिवर्तन करके हम कब्ज से छुटकारा पा सकते हैं। एक बार बवासीर पता चलने पर जीवन शैली में परिवर्तन करने आवश्यक हो जाते हैं। आप यह परिवर्तन बिना रोग का पता चले भी कर सकते हैं। इससे बवासीर रोग उत्पन्न ही नहीं होगा। इसके अतिरिक्त अन्य बहुत सारी बीमारियों के होने से भी आप बच जाएंगे।
हमको एक सक्रिय जीवन शैली का प्रारंभ करना है। दिनभर एक स्थान पर नहीं बैठे रहना है। चलते फिरते रहना है। यदि हमारा बैठने का कार्य है, तो भी हर थोड़ी थोड़ी देर बाद हम को उठकर टहलना चाहिए।
एक स्थान पर बैठे रहने से तथा टाइट फिटिंग कपड़े पहनने से हमारे शरीर के निचले हिस्से में रक्त एकत्रित होता चला जाता है। तथा धीरे-धीरे रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है। इस प्रकार बवासीर की शुरुआत हो जाती है।
एक्टिव रहने के साथ-साथ हमें नियमित व्यायाम भी करना चाहिए। व्यायाम के साथ साथ टहलना (वॉक) भी हमारी आंतों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जब हम चलते हैं, हमारी आंतें भी चलने लगती हैं।
हमको उस तरह के व्यायाम से बचना चाहिए जिनको करने से हमारे पेट के अंदर दबाव बढ़ता है। जैसे भारी वजन उठाना आदि। हमें योग, तैराकी तथा तेज तेज चलना चाहिए। यह सब हमारे वजन को भी नियंत्रित रखते हैं।
जल का अधिक सेवन
सबसे महत्वपूर्ण है पानी को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करना। हमें दिन भर में 3 से 4 लीटर तरल पदार्थों का सेवन करना ही चाहिए। सुबह उठते ही बिना कुल्ला किए तीन से चार गिलास गुनगुना पानी पियें। पानी घूँट घूँट कर के पीयें , एकदम जल्दी से ना पियें। तत्पश्चात दिन भर पानी पीते रहें। खाने से आधा घंटा पहले तथा 1 घंटे बाद तक भी हमें पानी नहीं पीना चाहिए। खाने के साथ पानी पीने से खाना पूरी तरह पच नहीं पाता है।
अगर कोई चिकित्सक या डाइटिशियन हमसे यह कहता है तो हमारा सर्वप्रथम रिस्पॉन्स होता है कि हम बहुत पानी पीते हैं। लेकिन यदि जब भी आप पानी पिए और इसको एक जगह लिखते चलें तो आपको पता चलेगा कि आप वास्तव में बहुत कम पानी पी रहे हैं।
पानी की जगह आप फलों का रस अथवा छाछ भी पी सकते हैं। नींबू के रस में थोड़ा काला नमक या शहद डालकर भी ले सकते हैं।
लम्बे दस्त
लंबे कब्ज के अतिरिक्त यदि लंबे समय तक मरीज को दस्त लगे रहे तब भी बवासीर के मस्से बन जाते हैं। बार बार शौच जाने से भी हमारी आंतें ढीली पड़ जाती हैं।
आनुवांशिक
कुछ मरीजों में मस्से अनुवांशिक होते हैं। उनके माता-पिता भी बवासीर से पीड़ित होते हैं तथा उनसे ही यह बीमारी उनके बच्चों में आती है।
बवासीर से बचने के लिए इस परिवार के सभी सदस्यों को इस लेख में बताई गयीं सभी सावधानियों का पालन करना चाहिए।
रेशे का सेवन - डाइटरी फाइबर रिच फूड
रेशा हमें वनस्पतियों से मिलता है। यह हमारे द्वारा खाई जाने वाली सब्जियों, फलों तथा अनाज से हमें मिलता है। इस रेशे को हमारी आंतें पचा नहीं पाती हैं तथा यह गुदाद्वार से मल के साथ बाहर निकल जाता है।
अपने भोजन में हमें धीरे-धीरे रेशे की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। अगर आपको गैस ज्यादा बनती है या फिर पेट फूला सा रहता है तो अत्यधिक रेशे के सेवन से परेशानी बढ़ सकती है।
हमको प्रतिदिन लगभग 30 ग्राम रेशे का सेवन करना चाहिए। एकरसता से बचने के लिए भोज्य पदार्थों को बदल बदल कर खाएं।
सब्जियां
सब्जियों में रेशे की मात्रा प्रचुर मात्रा में होती है। निम्न सब्जियों को बदल बदल कर अपने स्वाद के अनुसार खाना चाहिए।
सलाद, सलाद की पत्तियां-लेट्यूस, कच्ची गाजर, पालक, खीरा आदि
फाइबर अथवा रेशा एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट होता है। अन्य कार्बोहाइड्रेट्स को शरीर चीनी में परिवर्तित कर देता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। लेकिन रेशा शरीर में पचता नहीं है, यह हमारे शरीर से बिना पचे मल में निकल जाता है।
मुख्यतः दो प्रकार के रेशे पाए जाते हैं घुलनशील रेशा तथा अघुलनशील रेशा
घुलनशील रेशा
यह हमारे शरीर में पानी में घुलकर जेल जैसा एक गाढ़ा सा पदार्थ बन जाता है। यह अधपचे खाने में मिलकर उस को आँतों मैं आगे बढ़ाने में मदद करता है। घुलनशील रेशे नियमित लेने से कब्ज नहीं होती है। रेशे के कारण खाद्य पदार्थ तेजी से आँतों में आगे बढ़ते रहते हैं। वह एक ही जगह पर पड़े पड़े सूखते नहीं रहते हैं
ये ओट्स, जौ, राजमा, मसूर की दाल, सेब, संतरा, शकरकंदी, रेस्पवेरी आदि से हमें मिलता है।
अघुलनशील रेशा
इस प्रकार के रेशे पानी को सोखते जाते हैं तथा खाने के कूड़े करकट को समेट कर बाहर निकालने में मदद करते हैं। यह खाद्य पदार्थों के बाहरी छिलके से बनते हैं जैसे- सेब, नाशपाती, आलू, साबुत गेहूं की ब्रेड, गेहूं का चोकर, मक्का, राजमा, सोते की गई पत्तेदार तथा अंकुरित सब्जियां।
वजन
अधिक वजन होने से हमारे पेट पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इसलिए मोटे लोगों में बवासीर होने की संभावनायें अधिक होती हैं। अपने वजन को बढ़ने ना दें। उचित व्यायाम तथा समुचित भोजन से हम अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
गर्भावस्था
इस अवस्था में शरीर के निचले हिस्से पर दबाब बढ़ता है। शरीर के खून भी सही तरह से निकासी नहीं हो पाती है।
ज्यादातर महिलाएं बवासीर की शिकार हो जाती हैं। बच्चे के जनम के बाद उन्हें बहुत सावधानियां बरतनी चाहिए।
हाईली प्रोसेस फूड
खाने को तैयार खाद्य पदार्थ, डिब्बा बंद भोजन, पोटैटो चिप्स, फ़ास्ट फूड्स, फ्रोजेन फूड्स, तले हुए भोज्य पदार्थ बहुत भारी होते हैं तथा आसानी से नहीं पचते हैं। इनमें नमक एवं चीनी ज्यादा होती है, गन्दी चिकनाई होती है। ये हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनसे हमारा खाना सही तरह से पच नहीं पता है तथा कब्ज की शुरुआत हो जाती है।
इस तरह के भोज्य पदार्थों को हमें सेवन करने से बचना चाहिए।
शौच
शौच जाना हमारे शरीर की एक आदत सा होता है। लगभग प्रतिदिन हमको उसी नियमित समय पर शौच जाने का मन करता है। जब कभी आपको शौच लगे तो तुरंत शौच करने जाना चाहिए, कभी भी इसको टालना नहीं चाहिए। शौच न करने पर मल अंदर ही अंदर सूखता रहता है। बाद में शौच करने पर आपकी आँतों को अतिरिक्त बल का प्रयोग करना पड़ता है। यह भी बवासीर की शुरुआत हो सकती है।
शौच करते समय अतिरिक्त बल का उपयोग करने से गुदा मार्ग के द्वार पर उपस्थित उभारों की नसें फूलने लगती है। नसों के छिलने से खून आता है।
शौच के समय कमोड के ऊपर लंबे समय तक बैठना नहीं चाहिए। कुछ लोग वहां अखबार अथवा किताबें पढ़ते रहते हैं, मोबाइल पर समय व्यतीत करते हैं। यह सर्वथा अनुचित है। ज्यादा समय तक कमोड पर बैठने से बवासीर बनने लगती है।
ज्यादा भारी वजन उठाने से, बार बार खांसी आने से या गर्भावस्था में भी पेट में दबाव बढ़ जाता है। यदि यह दबाव कम नहीं होता है तो बवासीर के मस्से बनते चले जाते हैं। उनका आकार बड़ा तथा भयावह भी हो जाता है। जब यह मस्से छिल जाते हैं तो इनसे तेज रक्त भी मल के समय आ सकता है।
बवासीर से पीड़ित मरीज़ खून आने के भय से शौच ही नहीं जाते हैं। यदि शौच जाते भी हैं तो खून देखकर पूरी तरह शौच करे बिना बीच में ही उठ जाते हैं। बड़ी आंतों में मल सूखता रहता है तथा उसे बाहर निकलने में मरीज को फिर अतिरिक्त बल लगाना पड़ता है। फिर से खून आता है तथा मरीज सही नहीं हो पाता है।
बवासीर लाइलाज बीमारी नहीं है। लेकिन है तो एक बीमारी। समय रहते इससे बचाव करने में ही समझदारी है।
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