मंगलवार, 9 मई 2023

अपने गॉलब्लेडर को स्वस्थ कैसे रखें ? क्या हमारी अनियंत्रित जीवन शैली एवं गॉलस्टोन्स के बीच कोई संबध है ?

 

अपने गॉलब्लेडर को स्वस्थ कैसे रखेंक्या हमारी अनियंत्रित जीवन शैली एवं गॉलस्टोन्स के बीच कोई संबध है ?

 सर्जन डॉ पुनीत अग्रवाल 

 

 


 

 

आज गॉलब्लेडर को लेकर इतनी चिन्ता क्योँ ? अपने गॉलब्लेडर को हम किस तरह स्वस्थ रख सकते हैं ? क्या गॉलब्लेडर शरीर के लिए आवश्यक भी है ? ये कुछ सवाल हम सबके मन को कुरेदते रहते हैं। खास तौर से जब हम या हमारे प्रियजन पथरी (स्टोन), दर्द, पीलिया, कैंसर आदि गॉलब्लेडर की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।  किसी डॉक्टर्स से भी यह सवाल पूछने की हम हिम्मत नहीं जुटा पाते।  

बीमारी का इलाज करने से अच्छा है कि बीमारी को होने ही दें।  अगर हमारा  गॉलब्लेडर स्वस्थ है मजबूत है तो जल्दी जल्दी वह किसी बीमारी से ग्रसित नहीं होगा। स्वस्थ गॉलब्लेडर के लिए एक स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन का होना अत्यंत आवश्यक है। 

 

गॉलब्लेडर हमारे पेट में ऊपर दायीं तरफ स्तिथ जिगर /लिवर के ठीक नीचे रहता है। जिगर में बनने वाला पित्त /बाइल इसमें एकत्रित होता रहता है। गॉलब्लेडर इस पित्त को गाढ़ा करता रहता है, जिससे इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। जब हम खाना या कुछ भी खाते हैं तो सर्वप्रथम खाना पेट में पहुँचता है। यहाँ से यह छोटी आंत में पहुँचता है। खाने में मौजूद वसा  /चिकनाई छोटी आंत से 'कोलीसिस्टोकाइनिन ' नामक हॉर्मोन को स्रावित करता है।  यह हॉर्मोन पित्त की थैली पहुँच कर उसको संकुचित करता है। पित्त वहां से निकल कर छोटी आंत में खाने से मिल जाता है। यह चिकनाई एवं वसा को पचाने में मदद करता है।  यह पेट के अधिक तेजाब को भी निष्प्रभावित करता है। अधिक तेजाब हमारी छोटी आंत को घायल कर सकता है। 

 

गॉलब्लेडर नाशपाती के आकार का होता है। इसके आकार के महत्व को मैं आपको आगे अवगत कराऊंगा। 

 

जब गॉलब्लेडर अस्वस्थ हो जाता है तो सर्वप्रथम पित्त अत्यधिक गाढ़ा होता चला जाता है। यह गाढ़ा पित्त सूख कर पथरी /स्टोन बनाना प्रारम्भ कर देता है। यह पथरी जब बड़ी होती है तो पित्त की थैली की नली मैं फंस सकती है। इस अवस्था में मरीज को अत्यधिक दर्द महसूस होता है। 

गॉलब्लेडर में दो प्रकार से  स्टोन्स बन सकते हैं। इनके बनने का प्रमुख कारण हैं  ) हमारे पित्त की सरंचना में बदलाव का आना एवं ) पित्त का थैली के अंदर ही एकत्रित रहना तथा बहार नहीं पाना। 

स्टोन्स प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं - कोलेस्ट्रॉल तथा पिगमेंट्स। लगभग ७० % प्रतिशत मरीजों में कोलेस्ट्रॉल ही स्टोन्स बनने का प्रमुख कारण होता है। कोलेस्ट्रॉल स्टोन्स मुख्यतयाः इन परिस्थितियों में अधिक बनती हैं - स्त्रियाँ , मोटापा, चालीस से अधिक आयु, गर्भधारण कर सकने वाली स्त्रियां। यह सब देख कर हम कह सकते हैं कि इस्ट्रोजन , मोटापा, अधिक बच्चों का होना तथा अधिक उम्र इस बीमारी के प्रमुख जोखिम कारक हैं। इन परिस्थितियों में स्टोन्स बनने की सम्भावनायें अधिक रह्ती हैं। 

पिगमेंट्स स्टोन्स भूरे /ब्राउन या काले रंग के होते हैं। काले स्टोन्स कैल्शियम बिलिरुबिनेट के बने होते हैं तथा अधिक रक्त स्त्राव के कारण बनते हैं। 

स्त्रियों में स्टोन्स बनने का प्रमुख कारण हॉर्मोन्स हैं जिनके प्रभाव गॉलब्लेडर पर पड़ते हैं। इस्ट्रोजन पित्त में कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। प्रोजेस्टेरोन गॉलब्लेडर का संकुचन कम करता है जिससे वह पूरी तरह खाली नहीँ हो पता है तथा एकत्रित पित्त गाढ़ा होता चला जाता है। मोटे व्यक्तियों में वसा /फैट्स इस्ट्रोजन का अधिक स्त्राव करती है। डाइबिटीस भी गॉलब्लेडर का सकुंचन कम करती है। 

गॉलब्लेडर ऑपरेशन मेरे तथा अन्य शल्यचिकित्सकों द्वारा सर्वाधिक किये जाने वाले ऑपेऱशनो में से एक है। ये सोचने वाली बात है कि क्या हम कुछ सावधानियाँ बरत  कर अपने तथा अपने प्रिय जनों के गॉलब्लेडर को स्वस्थ रख सकते हैं ? आज इस लेख में आपसे इसी सन्दर्भ में चर्चा करूँगा।

जैसा मैंने ऊपर भी लिखा है, जो परिस्थितियां हमारे पाचन तंत्र को, हमारे शरीर को प्रभावित करती हैं , वे हमारे गॉलब्लेडर को भी प्रभावित करती हैं। एक स्वस्थ गॉलब्लेडर एक स्वस्थ शरीर में ही खुश रह सकता है। रोगी शरीर में हमारा गॉलब्लेडर भी भाँति-भाँति  के रोगों से ग्रसित हो जाता है।

आजकल की भाग दौड़ से भरी असंतुलित जीवन शैली, स्टोन्स बनने का एक प्रमुख कारण है। जीवन शैली से मेरा तात्पर्य है हमारे जीने का ढंग , हमारी दिनचर्या। हमारे रहने, खाने, पीने, घूमने, तथा सोचने का तरीका। क्या हम एक संतुलित जीवन व्यतीत कर रहे हैं ? क्या हमारा आहार संतुलित है ?क्या हम पर्याप्त व्यायाम कर रहे हैं ? हमारी मानसिक स्तिथि कैसी है ? ये सभी तत्व हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। लम्बे समय तक यदि हम असंतुलित जीवन शैली जीते रहते हैं, अमर्यादित जीवन-यापन करते रहते हैं, तो विभिन्न रोगों से हमारा शरीर धीरे-धीरे घिरता चला जाता है।  पित्त की थैली भी इनसे अछूती नहीं रहती है।  

सौं बीमारियों की एक जड़ है ' मोटापा ' मोटापा एक विशेष स्तिथि है जो हमारे शरीर के सरे अंगों को प्रभावित करती है। गॉलब्लेडर पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। गॉलब्लेडर स्टोन्स बनने का मोटापा एक प्रमुख एवं मूलभूत कारण है। एक  मोटे व्यक्ति में पतले व्यक्ति की अपेक्षा स्टोन्स बनने की सम्भावना तीन गुना तक अधिक होते है। 

हमारे खानपान में वे खाद्य पदार्थ जिनमें वसा, चिकनाई तथा कोलेस्ट्रॉल अधिक पाया जाता है, उनका स्टोन्स बनाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। खानपान में बदलाव कर हम अपना वज़न भी कम कर सकते हैं तथा स्टोन्स बनने की सम्भावना को भी कम  कर सकते हैं।

अधिक वज़न वाले व्यक्ति  में गॉलब्लेडर का आकार भी बड़ा हो जाता है।  यह ठीक प्रकार से कार्य भी नहीं करता है, एवं शरीर के कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। गरिष्ठ तथा अधिक चिकनाईयुक्त भोजन हमारे पाचन तंत्र एवं गॉलब्लेडर पर बहुत अधिक तनाव डालता है। 

अगर आप वज़न कम कर रहें हों तो इसको भी धीरे-धीरे ही कम करें। एक दम से ज्यादा तेजी से वज़न कम करना भी स्टोन्स बनने का एक प्रमुख कारण होता है। 

चिकनाई के साथ-साथ अपने भोजन में हमें रेशे /फाइबर का भी ध्यान रखना चाहिए। अधिक रेशे युक्त तथा कम वसा युक्त भोजन हमारे कोलेस्ट्रॉल को तरल अवस्था में रखता है, उसे जमने नहीँ देता है। चिकनाई अथवा वसा को अपने भोजन से धीरे-धीरे कम करना प्रारम्भ करें। बिल्कुल बिना चिकनाई का खाना खाने से भी स्टोन्स बन सकते हैं। चिकनाई की उपस्थिति से ही गॉलब्लेडर संकुचित होता है। यदि यह संकुचित ही नहीं होगा तो पित्त इसके अंदर ही भरा रहेगा। धीरे-धीरे यह गाढ़ा होता चला जायेगा तथा स्टोन्स बनने प्रारम्भ हो सकते हैं। 

रेशा हमारे दिल के लिए भी फायदेमंद है। ये L D L अथवा ख़राब कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। रेशा हमारे पाचन तंत्र के लिए तो बेहद लाभकारी है। रेशा पित्त को गतिमान बनता है, वह एक ही जगह स्थिर नहीं रहता। अपने भोजन में अधिक से अधिक रेशा युक्त खाने का प्रयास करना चाहिए। 

रेशे युक्त भोजन में मुख्यतः हमें ये भोज्य पदार्थ शामिल करना चाहिए:-

*साबुत अनाज (मिलेट्स ) जैसे -बाजरा, ज्वार, रागी, जौ, ब्राउन राइस (चावल का प्राकृतिक रूप, बिना साफ किया चावल ), ओट्स, आदि। अपने आटे को बिना छाने ही प्रयोग में लायें। ध्यान रखें आटा पीसते समय चक्की वाला आटे से चोकर को निकल ले। अगर आप होलग्रेन ब्रैड खरीद रहे हैं तो जानकारी लें कि उसमें मैदा का कितना प्रतिशत उपयोग हुआ है। कई ब्रैड में अस्सी प्रतिशत तक मैदा ही होती है, जिसका लम्बे समय तक सेवन हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव ही डालता है। 

*ताजी सब्जियां हमारे शरीर के लिए अमृत तुल्य हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ये हमारे गॉलब्लेडर को भी स्वस्थ रखती हैं। इन सबमें विटामिन सी तथा भी प्रचुर मात्रा में मिलतें  है जो पित्त की थैली के स्टोन्स को बनने से रोकने में मददगार होतें  हैं   फल तथा सब्जियों, खासतौर से गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पानी तथा रेशा भी होता है। इनको खाकर आपका पेट जल्दी भरता है तथा ये वज़न को भी कम करने में सहायक होती हैं। बदल बदल कर सब्जियों का प्रचुर में सेवन करें। सब्जियां पकाते समय कम से कम चिकनाई का प्रयोग करें। 

*फलों के सेवन हमारे गॉलब्लेडर के लिए अत्यंत लाभदायक है। इन फलों को आप प्रचुर मात्रा में सेवन कर सकते हैं- सेब, नाशपाती, संतरा, पपीता, खजूर, अंजीर आदि-आदि। सभी सिट्रस फल भी बहुत हे लाभदायक हैं। नाशपाती का आकार गॉलब्लेडर की तरह ही है। जिस अंग का हम ध्यान रख रहें हों, उसी आकार का भोज्य पदार्थ लाभदायक रहता है, अतः नाशपाती का अधिक से अधिक प्रयोग करें। 

*सलाद - कच्चा सलाद भी हमारे शरीर, हमारी आँतों तथा गॉलब्लेडर के लिए स्वास्थयवर्धक है। ये रेशे से भरपूर होते हैं। खाने से पहले तथा साथ में इनका सेवन करें। आप इन सलादों का सेवन कर सकते हैं - खीरा, गाजर, चुकंदर, पत्ता गोभी, आदि आदि। 

*दालें - दालों में प्रोटीन के साथ-साथ रेशे की प्रचुर मात्रा रहती है। सम्पूर्ण लाभ के लिए इन दालों का प्रमुखता से अपने खाने में शामिल करें - राजमा, मूँग, चने की दाल आदि आदि। 

*नट्स - ज्यादातर नट्स में अच्छे फैट्स के साथ-साथ रेशा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। नट्स कैलोरी से भरपूर रहते हैं, अतः अपनी आवशयकतानुसार ही सेवन करें। 

*मक्खन, चीज़, मीट - मीट तथा डेरी उत्पादनों में सैचुरेटेड फैट्स होते हैं। ये हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। हमको नॉन सैचुरेटेड फैट्स वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे मछली।  मक्खन की जगह वेजिटेबल ऑयल का प्रयोग करें। सोया मिल्क तथा टोफू का भी प्रयोग कर सकते हैं। 

*पानी - पानी का समुचित सेवन भी गॉलब्लेडर के स्वस्थ्य के लिए परम आवश्यक है। प्रतिदिन से १० गिलास पानी का सेवन करें। अगर कब्ज रहता है तो सुबह उठते ही चार गिलास गुनगुने पानी को पियें। ये हमारी आंतों की कब्जियत को दूर करता है। खाने से आधा घंटा पहले तथा डेढ़ घंटे बाद तक पानी नहीं पियें। पानी हमेशा घूँट -घूँट कर पियें। हमेशा बैठ कर ही पानी पियें।  कई शोध पत्रों से यह तथ्य सामने आया है कि पानी अधिक पीने वाले व्यक्ति कम  कैलोरी युक्त भोजन तथा कम चीनी का सेवन करते हैं। 

*अल्कोहल - यदि हम इसका सेवन सीमा में रहकर करते हैं तो हमारे गॉलब्लेडर पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। शोध पत्रों के अनुसार नियमित अल्कोहल लेने वाले व्यक्तियों में गॉलब्लेडर स्टोन्स तथा कैंसर बनने की सम्भावनायें कम हो जाती हैं। इसके सुरक्षात्मक प्रभाव के लिए स्त्रियों को एक तथा पुरषों को दो पेग तक अपने आपको सीमित करना चाहिए। 

*व्यायाम - नियमित व्यायाम हमारे शरीर के लिए अमृत तुल्य है। इसका कोई विकल्प नहीं है। इससे सिर्फ हमारी कैलोरीज खर्च होती है बल्कि ये हमारे मन, मनोदशा  को भी अच्छा करता है। व्यायाम का हमारे गॉलब्लेडर पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जब हमारा शरीर सक्रिय रहता है, गॉलब्लेडर सुकून से रहता है। जो महिलायें नियमित व्यायाम करती हैं उनमें स्टोन्स बनने की संभावनाएं ७५ % तक कम हो जाती हैं। पूर्ण प्रभाव के लिए हफ्ते में पाँच दिन तीस मिनट व्यायाम आवयश्यक है। 

*ऑलिव ऑयल - रोजाना दो चम्मच (टेबल स्पून फुल ) ऑलिव ऑयल लेने से स्टोन्स बनने की संभावनाएं कम होती हैं। 

*लेसिथिन - कुछ भोज्य पदार्थों में लेसिथिन नाम का पदार्थ मिलता है। यदि हम इन पदार्थों का सेवन करें तो ये कोलेस्ट्रॉल के स्टोन्स बनने से रोकते हैं। संपूर्ण लाभ के लिए निम्न  भोज्य सामिग्री को अपने खाने में शामिल करें- सोयाबीन, ओट्स, मूंगफली, पत्तेदार गोभी  आदि आदि। 

*गॉलब्लेडर अनुकूल भोजन- कुछ भोज्य पदार्थों का सेवन स्टोन्स बनने की प्रक्रिया को कमजोर करता है।  इनका प्रयोग अत्यधिक करें वरना दुष्प्रभाव भी हो सकता है, जैसे - कैफीनेटेड कॉफी, सीमित अल्कोहल, मूंगफली, मूंगफली बटर। कॉफी का एक या दो कप प्रतिदिन ले सकते है। कॉफ़ी पित्त के प्रवाह को बढ़ाने में मदद करती है। 

हमें किन भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए :-

समय के साथ फ़ास्ट फ़ूड का प्रचलन हमारे देश में बहुत बढ़ गया है। आधुनिक पाश्चात्य फ़ास्ट फ़ूड का सेवन करने से हमको बचना चाहिए। इन भोज्य पदार्थों में रिफाइंड कार्बोहायड्रेट तथा सैचुरेटेड फैट्स अधिक मात्रा में होते हैं। ये पदार्थ शरीर में कोलेस्ट्रॉल को तेजी से बढ़ाते हैं। इन भोज्य पदार्थों में कैलोरीस भी बहुत अधिक होती है। इन का  बिल्कुल भी सेवन करें-

*फ्राइड फूड्स 

*हाइली प्रोसेस्ड फूड्स- डोनट, पाई, कुकीज़ 

*होल मिल्क डेरी पदार्थ- चीज़, आइसक्रीम, मक्खन, पनीर, खोया, मिठाइयाँ 

*वसा युक्त रैड मीट 

*रिफाइंड शुगर 

 

अगर आप अपना वज़न कम कर रहें हैं तो संतुलित आहार के साथ नियमित व्यायाम भी करते रहें। वज़न को बहुत धीरे-धीरे ही कम करें। भोजन में आठ सौ कैलोरी प्रतिदिन से कम करें। क्रैश डाइट या कम खाकर वज़न जल्दी से कम करना हमारे दिल तथा गॉलब्लेडर पर अच्छा प्रभाव नहीँ छोड़ते हैं। वज़न कम करते समय अपना लक्ष्य इस प्रकार रखें की आपका वज़न प्रति सप्ताह से पौंड तक ही कम हो। 

नित्यानंदम श्री के अनुसार स्टोन्स में इन पदार्थों का परहेज भी जरूरी है- चावल, केला, ज्यादा मसालेदार तीखा तला खाना, दही, लस्सी (छाछ ले सकते हैं कभी-कभी ), पालक, मक्खन, ग्रेवी लेसदार सब्जियाँ, भिन्डी, अनार दाना, टमाटर, कटहल, चने की दाल आदि। हम निम्न पदार्थ खा सकते हैं - कुल्थी की दाल, खिचड़ी (छोटे चावल वाली ), थोड़ा गाय का घी, राज़मा, सरसों का साग, गेहूं का ज्वारा, छाछ कभी कभी, टमाटर बीज निकाल कर, मूली पत्ते समेत सलाद की तरह, खीरा, गाजर, नारियल पानी, अमरुद बीज निकल कर, मूंग, मटर गलाकर आदि। 

*हल्दी के अच्छे प्रभाव इसके अंदर करक्यूमिन के कारण होते हैं। हल्दी लेने से गॉल्स्टोन बनने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। करक्यूमिन पित्त के प्रवाह को गॉलब्लेडर से बढ़ा देती है। इससे वसा  का पाचन सही प्रकार से हो है तथा स्टोन्स नहीं बनते हैं। ये शरीर मैं कोलेस्ट्रॉल को भी कम करती  है। 

अपने खाने में प्रतिदिन एक चम्मच हल्दी ऊपर से मिला दें। इसको दूध में मिलाकर भी ले सकते हैं ,हल्दी के साथ अगर थोड़ी काली मिर्च भी मिला दी जाये तो शरीर में इसका अवशोषण ज्यादा हो जाता है। अगर आप खून पतला करने वाली दवाईयां ले रहें हैं तो हल्दी लें। 

*कई प्रकार की दवाइयां भी स्टोन्स बनाने में बढ़ावा देती हैं।  हॉरमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी - इनमें इस्ट्रोजन होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है। 

देखा जाये तो गॉलब्लेडर की अपनी कोई विशेष डाइट नहीं है। अगर हम अपने मन और तन को स्वस्थ रखेगें तो गॉलब्लेडर भी हमें कभी शिकायत का मौका नहीं देगा। 




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आप मुझसे इस बारे में puneet265@gmail.com  or WhatsApp 9837144287 पर संपर्क कर सकते हैं। आपके सुझावों का में स्वागत करता हूँ। 



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ऑपरेशन के बाद हमें गॉलब्लडैर पित्त की थैली पित्ताशय की जाँच ( Biopsy ) अवश्य करानी चाहिए, ये गॉलब्लेडर कैंसर हो सकता है। Gallbladder Cancer in Hindi

ऑपरेशन के बाद हमें गॉलब्लडैर पित्त की थैली पित्ताशय की जाँच ( Biopsy ) अवश्य  करानी चाहिए, ये गॉलब्लेडर कैंसर हो सकता है। 







गॉलब्लडैर निकालने का ऑपरेशन एक आम ऑपरेशन है। ये मेरे द्वारा किये जाने वाले सर्वाधिक ऑपेऱशनों में से एक है। ऑपरेशन के बाद पित्त की थैली को हम जाँच के लिए भेजते हैं। कई परिवारीजन इसको बेकार का खर्चा समझ कर मना करते हैं। 

ये एक बेहद जरुरी जाँच है। इससे हम पित्त की थैली में पनप रहे कैंसर को पकड़ सकते हैं। 
पित्त की थैली का कैंसर अब बहुत बढ़ गया है। ये एक खतरनाक कैंसर है।  इसका इलाज बीमारी बढ़ जाने पर अत्यंत दुष्कर हो जाता है। 
यदि प्रारंभिक अवस्था में इसका इलाज हो जाये तो हमें कुछ सफलता मिल जाती है। 
यदि ऑपरेशन के समय तक किसी भी जाँच में कैंसर नहीं आया है तो भी ऑपरेशन के बाद उसकी जाँच जरुरी है।  हो सकता है कि एक छोटा सा कैंसर अंदर छुपा हो। मालूम पड़ने पर हम उसका पक्का इलाज कर सकते हैं। 
दिल्ली के आसपास एक लाख लोगों में से ११ लोग इस बीमारी के चपेटे में आतेहैं। 
पुरुषों में पाये जाने वाले कैंसर में ये नवें स्थान पर तथा महिलाओं में तीसरे
नंबर पर ये पाया जाता है। मेडिकल रिसर्च के अनुसार १९९८ के बाद इस कैंसर में एकदम से उछाल आया है। 
रिसर्च के अनुसार, इसके ज्यादा बढ़ने के प्रमुख कारण हमारी परिवर्तित जीवन शैली तथा बढ़ता प्रदूषण है। 
कुछ रिस्क फैक्टर्स जिन्हें हम  बदल सकते हैं  उनके बारे में अब मैं चर्चा करूँगा -
 १ फ़ास्ट फूड्स जिनमें बहुत अधिक मात्रा में नमक, चीन तथा वसा होती है। ( high salt, sugar & fats )
२ नियमित व्यायाम न करना, मोटापा 
३ धूम्रपान, शराब का सेवन 
४ अत्यधिक तनाव, नींद पूरी न होना 
५ नदियों में बढ़ते प्रदूषण, केमिकल्स का होना 
६ बढ़ती उम्र तथा महिलाओं में यह अधिक होता है। 

कुछ अवस्थाओं में यह अधिक मिलता है जैसे 
१ यदि पथरी का आकार २-३ सेन्टीमीटर्स से ज्यादा है 
२ यदि गॉलब्लेडर पोलिप का आकार १ सेन्टीमीटर्स से ज्यादा है 
३ यदि मरीज को पॉर्सेलेन गॉलब्लेडर हो  

डॉ पुनीत अग्रवाल 
लप्रोस्कोपिक सर्जन 
Whatsapp 9837144287 


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शुक्रवार, 5 मई 2023

क्या पित्ताशय की थैली का ऑपरेशन बुजुर्गों के लिए सुरक्षित है ?

 क्या पित्ताशय की थैली  का ऑपरेशन बुजुर्गों के लिए सुरक्षित  है ?



किसी भी ऑपरेशन में कुछ खतरे होते हैं।  उम्र बढ़ने के साथ  साथ ये खतरे  बढ़ते चले जाते हैं। हमें  उम्र बढ़ने पर ऑपरेशन में क्या सावधानियां रखनी चाहिए, आज इसी बात पर मैं आपसे चर्चा करूँगा। 

हम सब घर में माता पिता तथा अन्य बुजुर्ग जन के साथ रहते हैं। उन्हें कभी न कभी ऑपरेशन की जरुरत पड़ जाती है। ऑपरेशन हम तभी करा पाते हैं जबकि हमको मालूम हो की ऑपरेशन सही रहेगा।  ऑपरेशन से उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी।  ऑपरेशन के बाद वो एक सामान्य जिंदगी बिता सकेंगे। 

हरेक ऑपरेशन के कुछ खतरे होते हैं। युवा अवस्था में भी यह खतरे होते हैं और उनको स्वीकार करके ही हम ऑपरेशन की स्वीकर्ति सर्जन को देते हैं। उम्र बढ़ने के साथ साथ ये खतरे बढ़ते चले जाते हैं। बुजुर्ग मरीजों में ऑपरेशन के बाद कुछ परेशानियां ज्यादा होती हैं, जैसे ऑपरेशन के बाद देर तक अचेत रहना, फेफड़ों में पानी भर जाना, पेशाब में इन्फेक्शन, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स, प्रेशर अल्सर्स /घाव, गिरना, घर पर वापसी में देर, आदि आदि। 

उम्र बढ़ने के साथ साथ डाइबिटीस, ब्लड प्रेशर, अस्थमा, थाइरोइड की बिमारियों का प्रभाव बढ़ जाता है।  उनका भली भांति कंट्रोल जरुरी होता है। दिल की जाँच जरुरी होती है। बहुत सारे मरीजों के स्टेंट होता है तथा वो खून पतला करने की दवा खातें हैं।  इस दवा का ऑपरेशन से पहले बंद करना जरुरी होता है। 

ऑपरेशन कराने से पहले ये सुनिश्चित कर लें कि ऑपरेशन जरुरी है। ऑपरेशन न करवाने से ज्यादा परेशानी होगी या ऑपरेशन करवाने के बाद। 
जो जो जरुरी जाँच बताई जाये उसे अवशय करवाएं। जैसे खून की जाँच, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, इको आदि। 

 अपने सर्जन तथा बेहोशी के डॉक्टर का सही चुनाव करें। एक अच्छी  अनुभवी टीम का चुनाव करें। अस्पताल में आईसीयू  जरूर होनी चाहिए तथा २४ घंटे ड्यूटी पर डॉक्टर उपलब्ध रहने चाहिए। 

जहाँ तक गॉलब्लेडर के ऑपरेशन का सवाल है तो हमें दूरबीन वाले ऑपरेशन का चुनाव करना चाहिए। कभी कभी यदि अंदर गॉलब्लेडर बहुत ज्यादा चिपका हुआ है तो सर्जन  को चीरे वाला ऑपरेशन करना होता है। चीरे वाले ऑपरेशन में घाव भरने में समय लगता है तथा रिकवरी में भी समय लगता है। लेकिन यदि जरुरी है तो हमें कराना ही चाहिए। 

ऑपरेशन का नाम सुन कर ही हमको डर लगता है। आजकल अच्छी दवाइयों, बेहतरीन देखभाल तथा अनुभवी टीम का चयन कर हम अपने बुजर्गों की सेफ सर्जरी करा सकते हैं। 












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सोमवार, 24 अप्रैल 2023

दर्द न होने पर क्या हमें पित्त की थैली का ऑपरेशन करवाना चाहिए ? मेरे गॉलब्लेडर में आज तक दर्द नहीं हुआ है, क्या इसका ऑपरेशन जरुरी है ? Treatment of Silent or Asymptomatic Gallbladder Stones

दर्द न होने पर क्या हमें पित्त की थैली का ऑपरेशन करवाना चाहिए ?मेरे गॉलब्लेडर में आज तक दर्द नहीं हुआ है, क्या इसका ऑपरेशन जरुरी है ?


आज के समय में पित्त की पथरी - गॉलब्लेडर स्टोन एक आम समस्या बन गयी है।  घर घर में लोग इस बीमारी से प्रभावित हो रहे हैं। जितना हम इसके बारे में जानते और समझते हैं, ये उससे कहीं ज्यादा गंभीर समस्या है । 

हर घर में किसी न किसी का पथरी का ऑपरेशन हो चुका है। एक अनुमान के अनुसार आम जनता में लगभग १०-२० % वयस्क लोगों के गॉलब्लेडर में  यह  पथरी पायी जाती है । उम्र के हिसाब से देखें तो अस्सी वर्ष तक पहुँचते पहुँचते यह संख्या ६०% तक पहुँच जाती हैं। 

मेरे मरीज मुझसे सबसे ज्यादा एक सवाल पूछते हैं।  उनके ८, १०, ११, १२, या १४ mm की पथरी अल्ट्रासाउंड में आई हुई है लेकिन उनके कोई दर्द नहीं है। पथरी की वजह से कोई दिक्कत नहीं है। ऐसी हालत में क्या उन्हें गॉलब्लेडर का ऑपरेशन करवाना चाहिए ?

लगभग ७०-८५% पथरियों से शरीर में कोई दिक्कत नहीं होती है। वे चुपचाप गॉलब्लेडर में बनीं  रहती हैं। इसे मेडिकल भाषा में हम साइलेंट या एसिम्पटोमैटिक ( Silent or Asymptomatic Stones ) स्टोन्स कहते हैं। 

सामान्यतः कोई भी डॉक्टर रिपोर्ट देखते ही ऑपरेशन की सलाह देता है । वस्तुतः मेरे विचार से भी और मेडिकल साइंस के अनुसार भी यह सही नहीं है। हमको ऑपरेशन तुरंत क्यों कराना या नहीं कराना चाहिए, आज इसी विषय पर आपसे चर्चा करूँगा। आखिर तक बने रहिये, आपको एक महत्वपूर्ण ब्लड की जाँच के बारे में बताऊंगा जो कि पथरी बनने पर हमें अवश्य करानी चाहिए।  

गॉलब्लेडर स्टोन्स की समस्या में धीरे धीरे बढ़ोतरी हो रही है।  ये हमारे गलत जीवन यापन, अधिक वसा -चिकनाई युक्त खाना खाने, शारीरिक व्यायाम के अभाव तथा अधिक मानसिक तनाव के कारण निर्मित हो रहीं हैं। 
पथरी बनने पर क्या नहीं खाना चाहिए जानने के लिए मेरी ये वीडियो देखिये 





लगभग २५% साइलेंट स्टोन्स से पीड़ित मरीज अगले दस सालों में स्टोन के दर्द को अनुभव करेंगे। लेकिन इस संख्या के लिए क्या सभी १००% मरीजों का ऑपरेशन हमें  आज ही कर देना चाहिए ? क्या ऑपरेशन के भी अपने खतरे नहीं  होते हैं ?

जानिए मेडिकल साइंस के एक्सपर्ट इस बारे में क्या कहते हैं -


दर्द रहित पथरी के लिए सभी मरीजों का ऑपरेशन करना व्यर्थ है। ये एक अनावश्यक कदम  है तथा इस बारे में सभी को सोच समझ कर निर्णय लेना चाहिए। 

जीवन के जरुरी बदलाव 


इन मरीजों का ऑपरेशन न करके हमें इन मरीजों का अल्ट्रासाउंड द्वारा नियमित परीक्षण करते रहना चाहिए। मरीज को अपने जीवन यापन में जरुरी परिवर्तन करने चाहिए तथा खाने पीने में जरुरी बदलाव करने चाहिए। व्यक्ति को सक्रिय जीवन शैली जीनी चाहिए। हफ्ते में कम से कम १५० से २०० मिनट व्यायाम करना चाहिए। २५ से ३५ ग्राम रेशे युक्त डाइट खानी चाहिए। अपनी डाइट में मौसम के अनुसार सब्जियां, सलाद तथा फलों को शामिल करना चाहिए। अपनी डायबिटीज तथा थाइरोइड पर  कन्ट्रोल रखना चाहिए।  अपना वजन भी लिमिट में रखना जरुरी है। 

अगर हमारी पथरी ने अभी तक दर्द  नहीं किया है  तो भी कुछ ऐसी परिस्थितयां होती हैं जिनके होने पर डॉक्टर्स हमें ऑपरेशन की सलाह देतें हैं। आज मैं उन्हीं के बारे में आपसे बात करूँगा। 

साइलेंट स्टोन्स में ऑपरेशन करना कब जरुरी होता है ? 


ये कारण थोड़े  टेक्निकल होते  हैं, इनको समझने के लिए हम एक योग्य चिकित्सक से सलाह ले सकते हैं। 

१ पथरी का आकार 

पथरी के आकार का महत्वपूर्ण स्थान है। यदि पथरियां बहुत छोटी छोटी हैं (५-६ mm तक) तो वो  डक्ट से  निकल कर बाहर आ सकती हैं। अग्नाशय में यदि फंस जाएं तो पैनक्रिएटाईटिस होने का खतरा है जो कि एक सीरियस बीमारी है, अतः ऑपरेशन जल्दी ही करा लेना चाहिए। 

यदि पथरी का आकार २० mm से ज्यादा है तो भी ऑपरेशन करा लेना चाहिए, अन्यथा कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा हो जाता है। 

यदि पित्त की थैली स्टोन्स से भरी हुई हो तब भी ऑपरेशन की जरुरत होती है। 

२ गॉलब्लेडर वॉल थिकनेस 

यदि अल्ट्रासाउंड कि रिपोर्ट में वॉल थिकनेस ज्यादा है तो भी ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। ये  गॉलब्लेडर के इन्फेक्शन को दर्शाता है। 

३ ऐसा गॉलब्लेडर जिसमें संकुचन न होता हो 


हमारे खाना  खाने पर गॉलब्लेडर में संकुचन होता है जिससे पाचक जूस निकल कर खाने को पचाते हैं। अल्ट्रासाउंड में ज्यादातर डॉक्टर इसे नहीं देखते हैं। आप आग्रह कर इसे दिखवाएं, यदि संकुचन नहीं है तो ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। 
इसे देखने के लिए खाली पेट तथा चिकनाई युक्त खाने के बाद पित्त की थैली के आकार को देखना चाहिए।  यदि खाने के बाद पित्त की थैली के आकार में कमी आ रही है तो पित्त की थैली में संकुचन हो रहा है। 

४ पॉर्सेलेन गॉलब्लेडर 


इस अवस्था में पित्त की थैली की दीवारों में कैल्शियम जमा हो जाता है। इसके लिए भी ऑपरेशन की जरुरत होती है। 

५ गॉलब्लेडर पोलिप 

पोलिप का आकार १ cm से ज्यादा हो तो गॉलब्लेडर निकलवाना सही रहता है। 

६ सिकल सेल एनीमिया 


इस अवस्था  में भी मैं ऑपरेशन की सलाह देता हूँ। 

७ निम्न अवस्थाओं में भी ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। 

लिवर सिरोसिस 
पोर्टल हाइपरटेंशन 
छोटे बच्चों में 
ट्रांसप्लांट करवाने से पहले क्योंकि स्टेरॉयड सेप्टिक इन्फेक्शन से लड़ने की शरीर की ताकत को कम करते हैं। 
बरिएट्रिक सर्जरी से पहले 

८ यदि आप बहुत रिमोट हिस्से में रहते हैं या पानी के जहाज पर रहते हैं। 
९ यदि cbd में पथरी हो तो उसे निकलने के बाद ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। 


१० यदि रीढ़ की हड्डी में चोट हो तो भी ऑपरेशन की सलाह दे जाती है। 
११ यदि डायबिटीज कंट्रोल नहीं रहती है तो भी ऑपरेशन करवा लेना चाहिए। 
१२ यदि गर्भधारण से पहले स्टोन्स पता चल जाएं तो ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। 

यदि सर्जरी करानी ही पड़े तो गॉलब्लेडर के लिए मैं हमेशा दूरबीन वाले ऑपरेशन  की सलाह देता हूँ-  Laparoscopic Cholecystectomy 

जरुरी खून की जांच 


स्टोन्स होने पर हमें अपनी लिपिड प्रोफाइल की खून की जांच जरूर करवानी चाहिए।  यह एक छोटी सी जाँच है। यदि ये रिपोर्ट सही नहीं है तो इसे चिकित्सीय परामर्श तथा जीवन शैली में परिवर्तन करके सही अवशय करना चाहिए। 

डॉ पुनीत अग्रवाल MS 
लप्रोस्कोपिक तथा लेज़र सर्जन 
दूरबीन सर्जन 
 ५८ / २९९ बी -१ आदर्श नगर 
खेरिया क्रासिंग 
आगरा २८२००१ 

WhatsApp 9837144287 
(मैं भी व्हाट्सएप्प पर फीस लेकर सलाह दे सकता हूँ )















क्या पित्ताशय की पथरी निकाल देनी चाहिए

मुझे कैसे पता चलेगा कि मुझे अपने पित्ताशय की थैली निकालने की जरूरत है?

मुझे अपनी पित्ताशय की थैली कब निकालनी चाहिए?

क्या कम काम करने वाली पित्ताशय की थैली को हटाने की जरूरत है?

पित्त की पथरी का ऑपरेशन कब करवाना चाहिए?
कितने एमएम की पथरी निकल सकती है?
पित्त पथरी के किस आकार की सर्जरी की जरूरत है?

क्या 10 एमएम पित्त पथरी की सर्जरी की जरूरत है? 

पित्ताशय की पथरी का कौन सा आकार खतरनाक है?
आप पित्ताशय की थैली की सर्जरी में कब तक देरी कर सकते हैं?







बुधवार, 19 अप्रैल 2023

गर्भावस्था में पित्त की पथरी का दर्द उठने पर क्या करें ? दवाइयां या ऑपरेशन ? क्या गर्भावस्था चालू रख सकते हैं ? स्टोन्स के कारण क्या महिलाओं की गर्भ धारण करने की क्षमता पर कोई प्रभाव पड़ता है ?

 

गर्भावस्था में पित्त की पथरी का दर्द उठने पर क्या करें ?  दवाइयां या ऑपरेशन ? 

क्या गर्भावस्था चालू रख सकते हैं ? 

स्टोन्स के कारण क्या महिलाओं की गर्भ धारण करने की क्षमता पर कोई प्रभाव पड़ता है ?








पित्त की थैली में पथरी आजकल एक सामान्य बीमारी हो गयी है।  हर घर में कोई न कोई इससे पीड़ित जरूर मिल जाता है। सामान्यतः अधिक वजन की लगभग चालीस वर्ष की स्त्रियां जो गर्भ धारण करने योग्य हैं  उनमें यह बीमारी  ज्यादा पायी जाती हैं। 

गॉलब्लेडर की अधिकतर पथरियां कोलेस्ट्रॉल से निर्मित होती हैं। गलत जीवन यापन, अधिक चिकनाई युक्त खाना तथा नियमित कसरत ना करने से इनके बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। गर्भावस्था में तो गॉलब्लेडर स्टोन बनने की संभावनाएं और भी ज्यादा हो जाती हैं।   

आज में आपसे बात करूँगा कि गर्भावस्था में पथरी मालूम चलने  पर हमें क्या  करना चाहिए।

 पथरी या स्टोन्स गर्भ ठहरने से पहले भी महिला को हो सकते हैं। स्टोन्स के कारण महिलाओं की गर्भ धारण करने की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। स्टोन्स के  इलाज पर भी इसका कोई अंतर नहीं पड़ता है की पथरी पहले से है या नयी बनी है। 

पथरी के लक्षण 

पथरी के कारण मरीज को बदहजमी, गैस बनना, पेट फूलना, पेट में दर्द होना, असहनीय दर्द, उल्टी, उबकाई आना, खट्टी डकार आना ,एसिडिटी होना तथा ज्यादा पसीना आना हो सकता है। 

अल्ट्रासाउंड द्वारा हम आसानी से इन स्टोन्स का पता चला सकते हैं। अल्ट्रासाउंड का बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता है। 

अगर हमें ये पता हो कि  महिला स्टोन्स से पीड़ित है तो गर्भ धारण करने से पहले उसका गॉलब्लेडर का ऑपरेशन करवा देना चाहिए। आजकल दूरबीन से गॉलब्लेडर का ऑपरेशन सहजता से संभव है। क्योंकि गर्भावस्था में कभी भी इसका दर्द उठ सकता है और उस समय इसके इलाज तथा ऑपरेशन में कहीं ज्यादा जोखिम होते हैं। ऑपरेशन तो हरहाल में होना ही है क्योंकि एक बार पथरी बनने पर ऑपरेशन ही इसका एकमात्र विकल्प है। इसलिए गर्भ धारण करने से पूर्व ही ऑपरेशन करवाना एक समझदारी भरा निर्णय है। 


लगभग 8 प्रतिशत महिलाओं में नवें महीने तक नयी पथरियां बन जाती हैं। लेकिन केवल 1 प्रतिशत महिलाओं में पथरी के कारण पेट दर्द या अन्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। 

नयी पथरी बनने के कुछ रिस्क फैक्टर्स होते हैं जिनके होने पर पथरी बनने के संभावनाएं ज्यादा होती हैं, जैसे - मोटापा, अधिक बच्चे होना, अधिक उम्र का होना, आनुवंशिक प्रवृतियां आदि। 

गर्भावस्था में महिला में हॉर्मोन्स बढ़ जाते हैं। गर्भावस्था में मुख्यता दो प्रकार के हॉर्मोन मिलते हैं- एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन।

एस्ट्रोजन के कारण कोलेस्टेरोल का स्राव शरीर में अधिक होता है। इसके कारण पथरी बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। 

प्रोजेस्टेरोन लिवर में बाइल एसिड का स्राव कम कर देता है।   बाइल एसिड  कोलेस्ट्रॉल को घुलनशील बना कर शरीर से बाहर निकालता है। बाइल एसिड कम बनने से पित्त में कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है तथा नए स्टोन बन सकते हैं। प्रोजेस्टेरोन गॉलब्लेडर का संकुचन भी सुस्त कर देता है। इस कारण इसके अंदर एकत्रित पित्त भरे भरे गाढ़ा होता जाता है, जम जाता है  और स्टोन्स बन जाते हैं। 

पूरी गर्भावस्था में, खास तौर से पहले तीन महीनों में स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल किया जाता है। इस समय इसके  ऑपरेशन की सलाह नहीं दी जाती है। ऑपरेशन गर्भ में पनप रहे बच्चे के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है। इस समय ऑपरेशन करने पर या तो गर्भपात हो सकता है या बच्चे पर दवाइयों का दुष्प्रभाव भी  हो सकता है। 

गर्भावस्था के बीच के तीन महीनों में  ऑपरेशन करना सुरक्षित रहता है।स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल करना चाहिए। सर्जन और परिवार मिलकर ऑपरेशन के फैसले को ले सकते हैं। दूरबीन का ऑपरेशन ही ज्यादा सुरछित रहता है। 

गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में ऑपरेशन करना बेहद जोखिम भरा होता है क्योंकि पेट में ऑपरेशन के लायक जगह ही नहीं बचती है। स्टोन का दर्द उठने पर एंटीबायोटिक्स, IV ग्लूकोस तथा दर्द निवारक दवाओं द्वारा इसको कंट्रोल करना चाहिए।


किसी भी समय अगर इमरजेंसी हो तो हमें ऑपरेशन करना पड़ता है लेकिन मरीज और उसके परिवार को सभी खतरों को समझना चाहिए। 

अगर गर्भावस्था में ऑपरेशन नहीं किया गया है तो बच्चा होने के 6 हफ्ते बाद दूरबीन द्वारा ऑपरेशन की मैं सलाह देता हूँ। किसी भी हालत में पुनः गर्भधारण से पहले तो हमें ऑपरेशन करवा ही लेना चाहिए। 

पथरी के इलाज के समय हमें सर्जन तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ दोनों की सलाह मान कर चलना चाहिए। 

गॉलब्लेडर के स्टोन्स के मरीजों के लिए क्या डाइट उचित है जानने के लिए मेरी ये वीडियो देखिये -







अगर हम इसका ऑपरेशन नहीं कराएं तो क्या होगा जानने के लिए मेरी ये वीडियो देखें -



डॉ पुनीत अग्रवाल MS 
दूरबीन सर्जन , लेज़र सर्जन 
प्रॉक्टोलॉजिस्ट 
Contact WhatsApp  9837144287 




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