शुक्रवार, 30 जून 2023

After piles surgery exercise - When to start what to start

 After piles surgery exercise - When to start what to start







आज पाइल्स एक सामान्य समस्या बन गयी है। पचास वर्ष के पचास प्रतिशत लोग इस बीमारी के चपेट में आते जा रहे हैं। पाइल्स अथवा बवासीर होने का मुख्य कारण है कब्जियत तथा हमारी अव्यस्थित जीवन शैली। अन्य प्रमुख कारण  हैं - शौच के समय अतिरिक्त बल लगाना, अधिक समय तक पौटी में बैठे रहना, लम्बे समय तक दस्त लगे रहना, अधिक वजन होना, अधिक वजन उठाना (weight lifting ), कम  रेशे वाला खाना, गर्भावस्था, गुदा मैथुन आदि। 

प्रारंभिक अवस्था में इसका इलाज बिना ऑपरेशन के संभव है लेकिन बीमारी की अवस्था बढ़ने पर ऑपरेशन या लेज़र या इंजेक्शन आवश्यक हो जाता है। 

किसी भी प्रकार के सर्जिकल इलाज के बाद हमें किस प्रकार का व्यायाम करना चाहिए और किस समय व्यायाम प्रारम्भ करना चाहिए आज इसी विषय पर आपसे चर्चा करूँगा। 

कीगेल व्यायाम 

क्या न करने से पहले में आपको बताऊंगा की आप को कौन से कसरत करनी चाहिए। ऑपरेशन के बाद जब आप चलने फिरने लगें, कमजोरी न महसूस कर रहें तो इसे प्रारम्भ करें। 

लेटे लेटे या बैठ कर इसे करें।  साँस को अंदर खींच  कर रोक लें। अब अपने गुदाद्वार को टाइट करें जैसे आप पेट कि गैस को बाहर  निकलने से रोक रहे हो।  पाँच सेकंड तक रोकने के बाद ढीला छोड़ दें। अब पुनः इसे टाइट करें। इसे सुबह शाम दस दस बार करें। अपने पेट की या जाघों की मांसपेशियों का बिलकुल भी प्रयोग न करें। 

व्यायाम 

किसी भी ऑपरेशन के बाद कड़ी मेहनत वाले व्यायाम न करें। ऐसे व्यायाम जिन्हें करने से गुदा मार्ग पर तनाव बढ़ता हो जैसे भारी वजन उठाना, दौड़ लगाना, तेज चलना, उठक बैठक लगाना, घुड़सवारी, दौड़ भाग वाले खेल जैसे फुटबॉल हॉकी आदि प्रारम्भ न करें। 

सर्व प्रथम घाव को पूरी तरह से भर जाने दें। इसे भरने में दो से तीन सप्ताह का समय लगता है। अपने शरीर में कमजोरी को महसूस न होने पर ही धीरे धीरे हल्का व्यायाम प्रारम्भ करें। शुरुआत में धीरे धीरे टहलना प्रारम्भ करें। तत्पश्चात सामान्य महसूस होने पर ही टहलने की गति तथा समय बढ़ाते रहें। टहलने से रक्त का प्रवाह बढ़ता है जिससे रक्त गुदा मार्ग पर एकत्रित नहीं होता है तथा खून बहने की समस्या कम हो जाती है। 

ऐसे व्यायाम न करें जिन्हें करने पर आप गुदा मार्ग पर तनाव महसूस करते हों। 

ऑपरेशन के बाद कमजोरी न लगने पर तथा सामान्य महसूस होने पर गतिविधि बढ़ाते रहें, मेहनत वाले व्यायाम भी अब धीरे धीरे शुरू करें। कोई भी कसरत एकदम से बहुत ज्यादा न करें। जिम में भी धीरे धीरे व्यायाम की गति बढ़ाएं। अपने शरीर की भाषा  को पहचानें, सामान्य महसूस होने पर ही आगे बढ़ें। ऐसे योग न करें जिन्हें करने से गुदा मार्ग में तनाव आता हो। 

ऑपरेशन /लेज़र/इंजेक्शन के बाद एक ही जगह पर बहुत देर तक न बैठें। बैठने के लिए डोनट तकिये का प्रयोग करें। ये बाजार में उपलब्ध हैं। (न मिलने पर आप मुझसे whatsapp पर लिंक ले सकते हैं।) ऑफिस में हर आधे घंटे बाद खड़े होकर कुछ टहलें। 

पूजा के समय शंख न बजाएं। 

अपने सर्जन द्वारा बताये गए मलहम का प्रयोग पॉटी जाने से पहले तथा बाद में अवशय करें। 

पॉटी के बाद गुनगुने पानी में बैठें Sitz Bath 

पॉटी के बाद सूखे टॉयलेट पेपर का प्रयोग बिलकुल भी न करें। गीले टॉयलेट पेपर या टिसू  से ही पोंछें। 

पॉटी करते समय जोर न लगाएं । 

संक्षेप में अपनी जीवन शैली धीरे धीरे सक्रिय करते रहें। 


मुझसे कुछ पूछना चाहें तो में whatsapp  9837144287 पर उपलब्ध हूँ। 


डॉ पुनीत अग्रवाल 

प्रोफेसर 

मेडिकल कॉलेज 

आगरा 


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शनिवार, 17 जून 2023

डायबिटीज को होने से कैसे रोकें ? क्या आपको डायबिटीज होने जा रही है ?

डायबिटीज को होने से कैसे रोकें ? 

क्या आपको डायबिटीज होने जा रही है ? क्या आप अपनी जीवन शैली में परिवर्तन के लिए तैयार हैं ?



भारत वर्ष में डायबिटीज एक महामारी की तरह फैल रही है। घर घर में, गांव और शहरों में करोड़ों लोग धीरे धीरे इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। भारत वर्ष में करीब दस करोड़ लोग डायबिटीज के रोगी हैं। विश्व के लगभग 17 प्रतिशत डायबिटीज के रोगी भारत में हैं। इस कारण भारत को डायबिटीज की राजधानी भी कहा जाता है। 

क्या हम अपने आपको डायबिटीज से बचा सकते हैं ? आज इसी विषय पर मैं आपसे चर्चा करूंगा। 

विश्व में हर दस सेकंड में कोई न कोई डायबिटीज के कारण मर रहा है। अगर आपका वजन ज्यादा है, अगर ट्राइग्लिसराइड (Lipid Profile) बढ़े हुए हैं, आपके माता पिता को डायबिटीज है या आपकी जीवन शैली सुस्त तथा आलसी है तो किसी भी समय आप को डायबिटीज हो सकती है। 

खुशी की बात है कि हम आज अपने आपको डायबिटीज होने से बचा सकते हैं। अगर आपको डायबिटीज हो गयी है तो इसको भलीभांति कन्ट्रोल कर सकते हैं तथा इसके दुष्प्रभावों से खुद को बचा सकते हैं। 

इसके लिए हमें क्या करना चाहिए ?

हमें अपनी जीवन शैली में कुछ छोटे छोटे परिवर्तन करने होंगे, सुस्तपन छोड़ कर सक्रिय होना होगा।  इसके साथ साथ अपने खान पान में भी कुछ परिवर्तन करने होँगे। ये परिवर्तन निश्चित तौर से संभव हैं। डायबिटीज के संभावित खतरों को देखते हुए हमें खुशी से इन्हें अपनाना चाहिए। 

1 मोटापा दूर करें 

डायबिटीज का प्रमुख कारण है वजन का अधिक होना। अपने सही वजन के लिए अपनी लम्बाई सेंटीमीटर में नापें, अब इसमें से 100 घटा दें। ये आपका आदर्श वजन किलोग्राम में बताता है। महिलाओं को 110 घटाना  चाहिए। अपने वजन को व्यायाम तथा सही खानपान से कम कर सकते हैं। 

प्रारम्भ में अपने वजन को दस प्रतिशत तक कम करने का प्रयास करें। तत्पश्चात अपने आदर्श वजन आने तक प्रयास रहें। एक रिसर्च पेपर के अनुसार यदि हम अपने वजन को 7 प्रतिशत तक कम करते हैं तो डायबिटीज होने की सम्भावना 60 प्रतिशत तक कम हो जाती है। जो भी प्रयास करें धीरे धीरे करें, एकदम से किए गए बदलाव हमारे शरीर पर अतिरिक्त तनाव पैदा करते हैं जो डायबिटीज को और बढ़ा सकते हैं। हमें  करीब आधा किलो वजन एक सप्ताह में कम करने का प्रयास करना चाहिए। वजन कम होने पर आप स्वयं अपने आपको ज्यादा स्वस्थ एवं तरोताजा महसूस करने लगेगें। 

2 नियमित व्यायाम 

नियमित व्यायाम के अनेक लाभ हैं। ये न केवल हमारे वजन को कम करता है बल्कि ब्लड शुगर को भी कम करता है। ये शरीर को इन्सुलिन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है ताकि शुगर प्रभावी तरीके से नार्मल रह  सके। 

हमें प्रतिदिन 30 मिनट (हफ्ते में 150 से 200 मिनट ) एरोबिक व्यायाम करना चाहिए। ये व्यायाम हमारे दिल की धड़कन को बढ़ाते हैं। यदि हम एक साथ 30 मिनट न कर सकें तो दस-दस मिनट तीन बार कर सकते हैं। ये व्यायाम हमारी शुगर को कन्ट्रोल में रखते हैं , हमारे हृदय को स्वस्थ रखते हैं  , रक्तचाप काम करते हैं तथा अच्छे  HDL कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। अगर आप अभी तक नियमित  व्यायाम नहीं कर रहे हैं तो इसे धीरे धीरे प्रारम्भ करें । 

एरोबिक व्यायाम के प्रमुख उदाहरण हैं - तेज चलना, दौड़ लगाना, तैरना, साइकिल चलाना, रस्सी कूदना आदि। 

हफ्ते में दो से तीन बार हम योग या वजन उठाने वाले व्यायाम भी कर सकते हैं। 

अगर अपने कार्यालय में हम एक ही स्थान पर  बैठे रहते हैं तो हमको हर तीस मिनट बाद उठ कर थोड़ी देर टहलना चाहिए। ये भी ब्लड शुगर कन्ट्रोल के लिए अच्छा रहता है। 

3 स्वास्थ्यप्रद शाकाहारी खाद्य पदार्थों का सेवन 

शाकाहारी  खाना कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन्स तथा खनिजों से भरपूर होता है। कार्बोहाइड्रेट्स हमको ऊर्जा तथा रेशा देते हैं। रेशे हमारी आँतों से बिना पचे बाहर निकल जाता है लेकिन ये हमारी आँतों के लिए लाभकारी होता है। रेशे युक्त खाद्यपदार्थ हमारे वजन को बढ़ने से रोकते हैं और डायबिटीज होने की सम्भावना को भी काम करते हैं। 

रेशे युक्त खाने के कुछ उदहारण निम्न हैं -

सभी फल 

सब्जियाँ जैसे हरी साग सब्जियां , गोभी, ब्रोकोली 

फलियां तथा दालें 

साबुत अनाज  ब्राउन चावल, स्टील कट ओट्स, ज्वार , बाजरा, रागी, चोकर सहित गेहूं आदि 

निम्न पदार्थों का सेवन न करें - 

चीनी युक्त खाने , मैदा, रिफाइंड शुगर रिफाइंड फूड्स , प्रोसेस्ड फूड्स, पैकेज्ड फूड्स आदि 

4 अच्छी चिकनाई को अपने खाने में जोड़ें 

अनसैचुरेटेड फैट्स हमारे कोलेस्ट्रॉल को काम करते हैं तथा हमारे हृदय के लिए अच्छे रहते हैं। 

*ओलिव आयल, सनफ्लॉवर आयल, केनोला आयल

*नट्स तथा बीज जैसे बादाम अखरोट मूंगफली फ्लैक्स  सीड्स, कद्दू के बीज 

*मछली सालमोन टुना 


सैचुरेटेड फैट्स हमें डेरी तथा मीट से मिलते हैं।  इनका सेवन हमें कम से कम करना चाहिए। चिकनाई निकला हुआ दूध तथा अन्य डेरी पदार्थ तथा चिकन का सेवन हम कर सकते हैं। 

अच्छे स्वास्थ्य के लिए आपकी खाने की प्लेट आधी फलों तथा सब्जियों से भरपूर होनी चाहिए। एक चौथाई साबुत अनाज से तथा एक चौथाई  प्रोटीन युक्त खाने से भरपूर होना चाहिए जैसे फलियां दालें मछली या चिकनाई रहित मीट। 

अपनी जीवन शैली को उपरोक्त सुझावों से बदलना प्रारम्भ कीजिये।  आप डायबिटीज से कोसों दूर रहेंगे। डायबिटीज यदि आपको है तो भी ये परिवर्तन आपको अपनाने चाहिए। 


Dr Puneet Agrawal 

MS 

Professor, Medical College

Agra


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शुक्रवार, 12 मई 2023

बवासीर के असरदार घरेलू नुस्खे Piles ka gharelu ilaaj, Piles home remedies, Piles home treatment in Hindi, How to get rid of piles in 3 days

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मूली का प्रयोग बवासीर के लिए सदियों से होता आ रहा है। मूली के प्रयोग से हम पाइल्स या बवासीर से जल्द छुटकारा पा सकते हैं। 

मूली हमारे पेट के पाचन के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन मूली खुद नहीं पचती है, उसको पचाने के लिए हमें उसके पत्ते खाने चाहिए। चूँकि पत्ते सालभर नहीं मिलते हैं उन्हें हम सुखाकर रख सकते हैं तथा उसका पाउडर  जरुरत पड़ने पर खा सकते हैं। 




सुबह खाली पेट आधा कप मूली का रस हमें लेना चाहिए । रस में स्वादानुसार सेंधा नमक, भुना जीरा तथा नीबू का रस मिला सकते हैं। रस पीने के बाद उसके गूदे  में शहद मिलाकर सूजे हुए बवासीर के मस्सों पर लगा सकते हैं। 

मूली तथा उसके पत्तों को हम सलाद की तरह तथा सब्जी बना कर भी ले सकते हैं 

 मूली में raphanin, glucosilinates  तथा विटामिन c होता है जो दर्द सूजन एवं खुजली कम करने में सहायक होता है। इसके वोलेटाइल ऑयल्स भी सूजन कम करते हैं। 

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मंगलवार, 9 मई 2023

अपने गॉलब्लेडर को स्वस्थ कैसे रखें ? क्या हमारी अनियंत्रित जीवन शैली एवं गॉलस्टोन्स के बीच कोई संबध है ?

 

अपने गॉलब्लेडर को स्वस्थ कैसे रखेंक्या हमारी अनियंत्रित जीवन शैली एवं गॉलस्टोन्स के बीच कोई संबध है ?

 सर्जन डॉ पुनीत अग्रवाल 

 

 


 

 

आज गॉलब्लेडर को लेकर इतनी चिन्ता क्योँ ? अपने गॉलब्लेडर को हम किस तरह स्वस्थ रख सकते हैं ? क्या गॉलब्लेडर शरीर के लिए आवश्यक भी है ? ये कुछ सवाल हम सबके मन को कुरेदते रहते हैं। खास तौर से जब हम या हमारे प्रियजन पथरी (स्टोन), दर्द, पीलिया, कैंसर आदि गॉलब्लेडर की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।  किसी डॉक्टर्स से भी यह सवाल पूछने की हम हिम्मत नहीं जुटा पाते।  

बीमारी का इलाज करने से अच्छा है कि बीमारी को होने ही दें।  अगर हमारा  गॉलब्लेडर स्वस्थ है मजबूत है तो जल्दी जल्दी वह किसी बीमारी से ग्रसित नहीं होगा। स्वस्थ गॉलब्लेडर के लिए एक स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन का होना अत्यंत आवश्यक है। 

 

गॉलब्लेडर हमारे पेट में ऊपर दायीं तरफ स्तिथ जिगर /लिवर के ठीक नीचे रहता है। जिगर में बनने वाला पित्त /बाइल इसमें एकत्रित होता रहता है। गॉलब्लेडर इस पित्त को गाढ़ा करता रहता है, जिससे इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। जब हम खाना या कुछ भी खाते हैं तो सर्वप्रथम खाना पेट में पहुँचता है। यहाँ से यह छोटी आंत में पहुँचता है। खाने में मौजूद वसा  /चिकनाई छोटी आंत से 'कोलीसिस्टोकाइनिन ' नामक हॉर्मोन को स्रावित करता है।  यह हॉर्मोन पित्त की थैली पहुँच कर उसको संकुचित करता है। पित्त वहां से निकल कर छोटी आंत में खाने से मिल जाता है। यह चिकनाई एवं वसा को पचाने में मदद करता है।  यह पेट के अधिक तेजाब को भी निष्प्रभावित करता है। अधिक तेजाब हमारी छोटी आंत को घायल कर सकता है। 

 

गॉलब्लेडर नाशपाती के आकार का होता है। इसके आकार के महत्व को मैं आपको आगे अवगत कराऊंगा। 

 

जब गॉलब्लेडर अस्वस्थ हो जाता है तो सर्वप्रथम पित्त अत्यधिक गाढ़ा होता चला जाता है। यह गाढ़ा पित्त सूख कर पथरी /स्टोन बनाना प्रारम्भ कर देता है। यह पथरी जब बड़ी होती है तो पित्त की थैली की नली मैं फंस सकती है। इस अवस्था में मरीज को अत्यधिक दर्द महसूस होता है। 

गॉलब्लेडर में दो प्रकार से  स्टोन्स बन सकते हैं। इनके बनने का प्रमुख कारण हैं  ) हमारे पित्त की सरंचना में बदलाव का आना एवं ) पित्त का थैली के अंदर ही एकत्रित रहना तथा बहार नहीं पाना। 

स्टोन्स प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं - कोलेस्ट्रॉल तथा पिगमेंट्स। लगभग ७० % प्रतिशत मरीजों में कोलेस्ट्रॉल ही स्टोन्स बनने का प्रमुख कारण होता है। कोलेस्ट्रॉल स्टोन्स मुख्यतयाः इन परिस्थितियों में अधिक बनती हैं - स्त्रियाँ , मोटापा, चालीस से अधिक आयु, गर्भधारण कर सकने वाली स्त्रियां। यह सब देख कर हम कह सकते हैं कि इस्ट्रोजन , मोटापा, अधिक बच्चों का होना तथा अधिक उम्र इस बीमारी के प्रमुख जोखिम कारक हैं। इन परिस्थितियों में स्टोन्स बनने की सम्भावनायें अधिक रह्ती हैं। 

पिगमेंट्स स्टोन्स भूरे /ब्राउन या काले रंग के होते हैं। काले स्टोन्स कैल्शियम बिलिरुबिनेट के बने होते हैं तथा अधिक रक्त स्त्राव के कारण बनते हैं। 

स्त्रियों में स्टोन्स बनने का प्रमुख कारण हॉर्मोन्स हैं जिनके प्रभाव गॉलब्लेडर पर पड़ते हैं। इस्ट्रोजन पित्त में कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। प्रोजेस्टेरोन गॉलब्लेडर का संकुचन कम करता है जिससे वह पूरी तरह खाली नहीँ हो पता है तथा एकत्रित पित्त गाढ़ा होता चला जाता है। मोटे व्यक्तियों में वसा /फैट्स इस्ट्रोजन का अधिक स्त्राव करती है। डाइबिटीस भी गॉलब्लेडर का सकुंचन कम करती है। 

गॉलब्लेडर ऑपरेशन मेरे तथा अन्य शल्यचिकित्सकों द्वारा सर्वाधिक किये जाने वाले ऑपेऱशनो में से एक है। ये सोचने वाली बात है कि क्या हम कुछ सावधानियाँ बरत  कर अपने तथा अपने प्रिय जनों के गॉलब्लेडर को स्वस्थ रख सकते हैं ? आज इस लेख में आपसे इसी सन्दर्भ में चर्चा करूँगा।

जैसा मैंने ऊपर भी लिखा है, जो परिस्थितियां हमारे पाचन तंत्र को, हमारे शरीर को प्रभावित करती हैं , वे हमारे गॉलब्लेडर को भी प्रभावित करती हैं। एक स्वस्थ गॉलब्लेडर एक स्वस्थ शरीर में ही खुश रह सकता है। रोगी शरीर में हमारा गॉलब्लेडर भी भाँति-भाँति  के रोगों से ग्रसित हो जाता है।

आजकल की भाग दौड़ से भरी असंतुलित जीवन शैली, स्टोन्स बनने का एक प्रमुख कारण है। जीवन शैली से मेरा तात्पर्य है हमारे जीने का ढंग , हमारी दिनचर्या। हमारे रहने, खाने, पीने, घूमने, तथा सोचने का तरीका। क्या हम एक संतुलित जीवन व्यतीत कर रहे हैं ? क्या हमारा आहार संतुलित है ?क्या हम पर्याप्त व्यायाम कर रहे हैं ? हमारी मानसिक स्तिथि कैसी है ? ये सभी तत्व हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। लम्बे समय तक यदि हम असंतुलित जीवन शैली जीते रहते हैं, अमर्यादित जीवन-यापन करते रहते हैं, तो विभिन्न रोगों से हमारा शरीर धीरे-धीरे घिरता चला जाता है।  पित्त की थैली भी इनसे अछूती नहीं रहती है।  

सौं बीमारियों की एक जड़ है ' मोटापा ' मोटापा एक विशेष स्तिथि है जो हमारे शरीर के सरे अंगों को प्रभावित करती है। गॉलब्लेडर पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। गॉलब्लेडर स्टोन्स बनने का मोटापा एक प्रमुख एवं मूलभूत कारण है। एक  मोटे व्यक्ति में पतले व्यक्ति की अपेक्षा स्टोन्स बनने की सम्भावना तीन गुना तक अधिक होते है। 

हमारे खानपान में वे खाद्य पदार्थ जिनमें वसा, चिकनाई तथा कोलेस्ट्रॉल अधिक पाया जाता है, उनका स्टोन्स बनाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। खानपान में बदलाव कर हम अपना वज़न भी कम कर सकते हैं तथा स्टोन्स बनने की सम्भावना को भी कम  कर सकते हैं।

अधिक वज़न वाले व्यक्ति  में गॉलब्लेडर का आकार भी बड़ा हो जाता है।  यह ठीक प्रकार से कार्य भी नहीं करता है, एवं शरीर के कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। गरिष्ठ तथा अधिक चिकनाईयुक्त भोजन हमारे पाचन तंत्र एवं गॉलब्लेडर पर बहुत अधिक तनाव डालता है। 

अगर आप वज़न कम कर रहें हों तो इसको भी धीरे-धीरे ही कम करें। एक दम से ज्यादा तेजी से वज़न कम करना भी स्टोन्स बनने का एक प्रमुख कारण होता है। 

चिकनाई के साथ-साथ अपने भोजन में हमें रेशे /फाइबर का भी ध्यान रखना चाहिए। अधिक रेशे युक्त तथा कम वसा युक्त भोजन हमारे कोलेस्ट्रॉल को तरल अवस्था में रखता है, उसे जमने नहीँ देता है। चिकनाई अथवा वसा को अपने भोजन से धीरे-धीरे कम करना प्रारम्भ करें। बिल्कुल बिना चिकनाई का खाना खाने से भी स्टोन्स बन सकते हैं। चिकनाई की उपस्थिति से ही गॉलब्लेडर संकुचित होता है। यदि यह संकुचित ही नहीं होगा तो पित्त इसके अंदर ही भरा रहेगा। धीरे-धीरे यह गाढ़ा होता चला जायेगा तथा स्टोन्स बनने प्रारम्भ हो सकते हैं। 

रेशा हमारे दिल के लिए भी फायदेमंद है। ये L D L अथवा ख़राब कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है। रेशा हमारे पाचन तंत्र के लिए तो बेहद लाभकारी है। रेशा पित्त को गतिमान बनता है, वह एक ही जगह स्थिर नहीं रहता। अपने भोजन में अधिक से अधिक रेशा युक्त खाने का प्रयास करना चाहिए। 

रेशे युक्त भोजन में मुख्यतः हमें ये भोज्य पदार्थ शामिल करना चाहिए:-

*साबुत अनाज (मिलेट्स ) जैसे -बाजरा, ज्वार, रागी, जौ, ब्राउन राइस (चावल का प्राकृतिक रूप, बिना साफ किया चावल ), ओट्स, आदि। अपने आटे को बिना छाने ही प्रयोग में लायें। ध्यान रखें आटा पीसते समय चक्की वाला आटे से चोकर को निकल ले। अगर आप होलग्रेन ब्रैड खरीद रहे हैं तो जानकारी लें कि उसमें मैदा का कितना प्रतिशत उपयोग हुआ है। कई ब्रैड में अस्सी प्रतिशत तक मैदा ही होती है, जिसका लम्बे समय तक सेवन हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव ही डालता है। 

*ताजी सब्जियां हमारे शरीर के लिए अमृत तुल्य हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के साथ ये हमारे गॉलब्लेडर को भी स्वस्थ रखती हैं। इन सबमें विटामिन सी तथा भी प्रचुर मात्रा में मिलतें  है जो पित्त की थैली के स्टोन्स को बनने से रोकने में मददगार होतें  हैं   फल तथा सब्जियों, खासतौर से गहरी हरी पत्तेदार सब्जियों में प्रचुर मात्रा में पानी तथा रेशा भी होता है। इनको खाकर आपका पेट जल्दी भरता है तथा ये वज़न को भी कम करने में सहायक होती हैं। बदल बदल कर सब्जियों का प्रचुर में सेवन करें। सब्जियां पकाते समय कम से कम चिकनाई का प्रयोग करें। 

*फलों के सेवन हमारे गॉलब्लेडर के लिए अत्यंत लाभदायक है। इन फलों को आप प्रचुर मात्रा में सेवन कर सकते हैं- सेब, नाशपाती, संतरा, पपीता, खजूर, अंजीर आदि-आदि। सभी सिट्रस फल भी बहुत हे लाभदायक हैं। नाशपाती का आकार गॉलब्लेडर की तरह ही है। जिस अंग का हम ध्यान रख रहें हों, उसी आकार का भोज्य पदार्थ लाभदायक रहता है, अतः नाशपाती का अधिक से अधिक प्रयोग करें। 

*सलाद - कच्चा सलाद भी हमारे शरीर, हमारी आँतों तथा गॉलब्लेडर के लिए स्वास्थयवर्धक है। ये रेशे से भरपूर होते हैं। खाने से पहले तथा साथ में इनका सेवन करें। आप इन सलादों का सेवन कर सकते हैं - खीरा, गाजर, चुकंदर, पत्ता गोभी, आदि आदि। 

*दालें - दालों में प्रोटीन के साथ-साथ रेशे की प्रचुर मात्रा रहती है। सम्पूर्ण लाभ के लिए इन दालों का प्रमुखता से अपने खाने में शामिल करें - राजमा, मूँग, चने की दाल आदि आदि। 

*नट्स - ज्यादातर नट्स में अच्छे फैट्स के साथ-साथ रेशा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। नट्स कैलोरी से भरपूर रहते हैं, अतः अपनी आवशयकतानुसार ही सेवन करें। 

*मक्खन, चीज़, मीट - मीट तथा डेरी उत्पादनों में सैचुरेटेड फैट्स होते हैं। ये हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। हमको नॉन सैचुरेटेड फैट्स वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे मछली।  मक्खन की जगह वेजिटेबल ऑयल का प्रयोग करें। सोया मिल्क तथा टोफू का भी प्रयोग कर सकते हैं। 

*पानी - पानी का समुचित सेवन भी गॉलब्लेडर के स्वस्थ्य के लिए परम आवश्यक है। प्रतिदिन से १० गिलास पानी का सेवन करें। अगर कब्ज रहता है तो सुबह उठते ही चार गिलास गुनगुने पानी को पियें। ये हमारी आंतों की कब्जियत को दूर करता है। खाने से आधा घंटा पहले तथा डेढ़ घंटे बाद तक पानी नहीं पियें। पानी हमेशा घूँट -घूँट कर पियें। हमेशा बैठ कर ही पानी पियें।  कई शोध पत्रों से यह तथ्य सामने आया है कि पानी अधिक पीने वाले व्यक्ति कम  कैलोरी युक्त भोजन तथा कम चीनी का सेवन करते हैं। 

*अल्कोहल - यदि हम इसका सेवन सीमा में रहकर करते हैं तो हमारे गॉलब्लेडर पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। शोध पत्रों के अनुसार नियमित अल्कोहल लेने वाले व्यक्तियों में गॉलब्लेडर स्टोन्स तथा कैंसर बनने की सम्भावनायें कम हो जाती हैं। इसके सुरक्षात्मक प्रभाव के लिए स्त्रियों को एक तथा पुरषों को दो पेग तक अपने आपको सीमित करना चाहिए। 

*व्यायाम - नियमित व्यायाम हमारे शरीर के लिए अमृत तुल्य है। इसका कोई विकल्प नहीं है। इससे सिर्फ हमारी कैलोरीज खर्च होती है बल्कि ये हमारे मन, मनोदशा  को भी अच्छा करता है। व्यायाम का हमारे गॉलब्लेडर पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जब हमारा शरीर सक्रिय रहता है, गॉलब्लेडर सुकून से रहता है। जो महिलायें नियमित व्यायाम करती हैं उनमें स्टोन्स बनने की संभावनाएं ७५ % तक कम हो जाती हैं। पूर्ण प्रभाव के लिए हफ्ते में पाँच दिन तीस मिनट व्यायाम आवयश्यक है। 

*ऑलिव ऑयल - रोजाना दो चम्मच (टेबल स्पून फुल ) ऑलिव ऑयल लेने से स्टोन्स बनने की संभावनाएं कम होती हैं। 

*लेसिथिन - कुछ भोज्य पदार्थों में लेसिथिन नाम का पदार्थ मिलता है। यदि हम इन पदार्थों का सेवन करें तो ये कोलेस्ट्रॉल के स्टोन्स बनने से रोकते हैं। संपूर्ण लाभ के लिए निम्न  भोज्य सामिग्री को अपने खाने में शामिल करें- सोयाबीन, ओट्स, मूंगफली, पत्तेदार गोभी  आदि आदि। 

*गॉलब्लेडर अनुकूल भोजन- कुछ भोज्य पदार्थों का सेवन स्टोन्स बनने की प्रक्रिया को कमजोर करता है।  इनका प्रयोग अत्यधिक करें वरना दुष्प्रभाव भी हो सकता है, जैसे - कैफीनेटेड कॉफी, सीमित अल्कोहल, मूंगफली, मूंगफली बटर। कॉफी का एक या दो कप प्रतिदिन ले सकते है। कॉफ़ी पित्त के प्रवाह को बढ़ाने में मदद करती है। 

हमें किन भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए :-

समय के साथ फ़ास्ट फ़ूड का प्रचलन हमारे देश में बहुत बढ़ गया है। आधुनिक पाश्चात्य फ़ास्ट फ़ूड का सेवन करने से हमको बचना चाहिए। इन भोज्य पदार्थों में रिफाइंड कार्बोहायड्रेट तथा सैचुरेटेड फैट्स अधिक मात्रा में होते हैं। ये पदार्थ शरीर में कोलेस्ट्रॉल को तेजी से बढ़ाते हैं। इन भोज्य पदार्थों में कैलोरीस भी बहुत अधिक होती है। इन का  बिल्कुल भी सेवन करें-

*फ्राइड फूड्स 

*हाइली प्रोसेस्ड फूड्स- डोनट, पाई, कुकीज़ 

*होल मिल्क डेरी पदार्थ- चीज़, आइसक्रीम, मक्खन, पनीर, खोया, मिठाइयाँ 

*वसा युक्त रैड मीट 

*रिफाइंड शुगर 

 

अगर आप अपना वज़न कम कर रहें हैं तो संतुलित आहार के साथ नियमित व्यायाम भी करते रहें। वज़न को बहुत धीरे-धीरे ही कम करें। भोजन में आठ सौ कैलोरी प्रतिदिन से कम करें। क्रैश डाइट या कम खाकर वज़न जल्दी से कम करना हमारे दिल तथा गॉलब्लेडर पर अच्छा प्रभाव नहीँ छोड़ते हैं। वज़न कम करते समय अपना लक्ष्य इस प्रकार रखें की आपका वज़न प्रति सप्ताह से पौंड तक ही कम हो। 

नित्यानंदम श्री के अनुसार स्टोन्स में इन पदार्थों का परहेज भी जरूरी है- चावल, केला, ज्यादा मसालेदार तीखा तला खाना, दही, लस्सी (छाछ ले सकते हैं कभी-कभी ), पालक, मक्खन, ग्रेवी लेसदार सब्जियाँ, भिन्डी, अनार दाना, टमाटर, कटहल, चने की दाल आदि। हम निम्न पदार्थ खा सकते हैं - कुल्थी की दाल, खिचड़ी (छोटे चावल वाली ), थोड़ा गाय का घी, राज़मा, सरसों का साग, गेहूं का ज्वारा, छाछ कभी कभी, टमाटर बीज निकाल कर, मूली पत्ते समेत सलाद की तरह, खीरा, गाजर, नारियल पानी, अमरुद बीज निकल कर, मूंग, मटर गलाकर आदि। 

*हल्दी के अच्छे प्रभाव इसके अंदर करक्यूमिन के कारण होते हैं। हल्दी लेने से गॉल्स्टोन बनने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। करक्यूमिन पित्त के प्रवाह को गॉलब्लेडर से बढ़ा देती है। इससे वसा  का पाचन सही प्रकार से हो है तथा स्टोन्स नहीं बनते हैं। ये शरीर मैं कोलेस्ट्रॉल को भी कम करती  है। 

अपने खाने में प्रतिदिन एक चम्मच हल्दी ऊपर से मिला दें। इसको दूध में मिलाकर भी ले सकते हैं ,हल्दी के साथ अगर थोड़ी काली मिर्च भी मिला दी जाये तो शरीर में इसका अवशोषण ज्यादा हो जाता है। अगर आप खून पतला करने वाली दवाईयां ले रहें हैं तो हल्दी लें। 

*कई प्रकार की दवाइयां भी स्टोन्स बनाने में बढ़ावा देती हैं।  हॉरमोन रिप्लेसमेंट थेरेपी - इनमें इस्ट्रोजन होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है। 

देखा जाये तो गॉलब्लेडर की अपनी कोई विशेष डाइट नहीं है। अगर हम अपने मन और तन को स्वस्थ रखेगें तो गॉलब्लेडर भी हमें कभी शिकायत का मौका नहीं देगा। 




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