बुधवार, 15 सितंबर 2021

Sitz Bath and Ashwini Mudra सिट्ज़ बाथ एवं अश्विनी मुद्रा

 सिट्ज़ बाथ एवं अश्विनी मुद्रा

डॉ पुनीत अग्रवाल एमएस



 सिट्ज़ बाथ 

 सिट्ज़ बाथ में  मरीज गुनगुने पानी से  भरे टब  में बैठकर सिकाई करता है।  यह गुदा मार्ग की सभी बीमारियों में विशेष लाभप्रद रहता है।  गुदा मार्ग के तनाव को कम करने के साथ-साथ यह इस जगह की अच्छी तरह से सफाई भी करता है। 
 सिट्ज़ शब्द एक जर्मन शब्द sitzen  से बना है जिसका अर्थ होता है बैठना तो to sit . 

 सिट्ज़ बाथ  के प्रमुख फायदे

गुदा मार्ग तथा आसपास के हिस्से में दर्द कम करता है। 
खुजली तथा जलन में आराम पहुंचता है। 
एकत्रित मवाद, गंदा पानी,  आंव और मल आदि अच्छी तरह से साफ हो जाता है। 
खून का प्रवाह बढ़ने के कारण सभी घाव जल्दी भरते हैं। 
गुदा मार्ग की सभी मांसपेशियों में तनाव भी कम करता है। 

हमें सिट्ज़ बाथ कब करना चाहिए

बवासीर

बवासीर की सभी अवस्थाओं में  सिट्ज़ बाथ  से बहुत आराम मिलता है।  मस्सों की सूजन कम करने के साथ-साथ मस्सों की जलन भी यह कम  करता है।  उनके आकार को भी कम करता है।  अगर खून आ रहा हो तो भी यह लाभप्रद रहता है। 
बवासीर के ऑपरेशन के बाद हमें नियमित  सिट्ज़ बाथ बात लेना चाहिए।  गुदा मार्ग के हिस्से को साफ करने के साथ-साथ यह दर्द, जलन तथा सफाई में सहायक है।  तत्पश्चात हम चिकित्सक द्वारा बताए गए मल्हम को लगा सकते हैं। 

एनल फिशर 

एनल फिशर के कारण गुदा मार्ग की  सभी मांसपेशियां तनाव में रहता  है, जिससे दर्द भी बढ़ता है तथा घाव जल्दी से भरता भी नहीं है। 
 सिट्ज़ बाथ मांसपेशियों को ढीला करता है, तनाव कम करता है, दर्द, जलन एवं खुजली को घटाता है।  खून का प्रवाह इस हिस्से में बढ़ने लगता है, जिससे घाव जल्दी भरता है। 
अगर फिशर का ऑपरेशन हुआ है तो  सिट्ज़ बाथ लेने से बहुत आराम मिलता है।  प्रत्येक चिकित्सक  सिट्ज़ बाथ को  करने की सलाह अपने मरीजों को देते हैं। 

भगंदर

भगंदर के कारण गुदा मार्ग  के आसपस बहुत सूजन आ जाती है जो दर्द को बढ़ाती है। 
 सिट्ज़ बाथ  सूजन को कम करता है, मवाद की अच्छी तरह सफाई करता है तथा दर्द को भी कम करता है।  भगंदर के ऑपरेशन के बाद तो  सिट्ज़ बाथ करना बहुत आवश्यक होता है। 

अन्य अवस्थाएं

गुदा मार्ग  के अतिरिक्त जननांगों की बीमारियों में भी  सिट्ज़ बाथ लेना अच्छा रहता है।  अपने चिकित्सक की सलाह के अनुरूप इसे लेना लाभप्रद है। 

 सिट्ज़ बाथ करने का तरीका

 सिट्ज़ बाथ करने के लिए हमारे पास एक प्लास्टिक टब या नाद होनी चाहिए . उसका आकार इतना होना चाहिए कि हमारे कूल्हे उसमें ठीक प्रकार से समा सकें।  उसका आकार बहुत छोटा या बड़ा नहीं होना चाहिए।  टब की गहराई भी अधिक नहीं होनी चाहिए, वरना उस में बैठने एवं उठने में कठिनाई होगी। 
टब को  अंदर तथा बाहर से रगड़ कर साफ़ कर लेना चाहिए।  तत्पश्चात उसमें गुनगुना पानी लगभग 4 इंच तक भर लेना चाहिए।  हम गीज़र  से पानी ले सकते हैं।  पानी के तापमान का विशेष ध्यान रखें।  तापमान इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि हम उसको सहन ना कर सकें।  अगर पानी अधिक गर्म हो तो उसमें थोड़ा सामान्य तापमान का पानी मिला लेना चाहिए। 
अगर हमारे  चिकित्सक ने किसी दवा मिलाने को बता रखा है तो उसे इस पानी में मिला दें।  ज्यादातर चिकित्सक सेवलॉन,डिटोल अथवा बीटाडीन से सिकाई करवाना पसंद करते हैं।  दवाई मिलाने से पहले यह देख ले कि आपको उस दवाई से एलर्जी तो नहीं है।  बहुत लोगों को बीटाडीन आदि से एलर्जी होती है

टब कहां रखें
बहुत लोग सोचते हैं कि टब जमीन पर ही रखा होना चाहिए।  ज्यादा उम्र के लोग, मोटे लोग या  जिन्हें घुटनों में परेशानी होती है वह यह सोचकर घबरा जाते  हैं कि जमीन पर कैसे बैठे।  एक बार बैठ कर उठना तो और भी दुष्कर हो जाता है। 
इससे बचने के लिए टब को जमीन पर ना रखकर एक कम ऊंचाई के स्टूल पर रखें।  स्टूल हिलना नहीं चाहिए।  इसमें बैठने तथा सिकाई के बाद उठने  में परेशानी नहीं होगी।  इस स्टूल के सामने पैर रखने के लिए एक अन्य स्टूल अथवा पटला रखें। 

बैठने से पहले पानी का तापमान जांच लें।  तत्पश्चात कूल्हों की तरफ से धीरे से टब में बैठ जाएं।  आपके दोनों पैर बाहर रहने चाहिए।  पैरों को कूल्हों से इस प्रकार मोड़ें  की गुदा मार्ग पानी में अच्छी तरह डूबा रहे। 
अगर बैठे-बैठे पानी का तापमान कम हो रहा हो तो उसमें धीरे-धीरे गर्म पानी भी मिला सकते हैं। 
सिकाई के बाद धीरे से सहारा लेकर खड़े हो जाएं।  मुलायम कपड़े से बदन को सोख लें। 
अगर आपके  चिकित्सक ने मल्हम  बताया हुआ है तो आप उसको गुदा मार्ग पर लगा ले।  अपने चिकित्सक से यह जरूर पूछ लें कि  मलहम बाहर लगाना है, अंदर लगाना है या दोनों जगह लगाना है। 
 सिट्ज़ बाथ के पश्चात टब को अच्छी तरह से धोकर तथा साफ करके रख दें। 

अश्विनी मुद्रा
अश्विनी मुद्रा को भी हम पानी में बैठे बैठे कर सकते हें। यह गुदा मार्ग के रोगों के लिए राम बाण है। इस क्रिया केलिए पानी में बैठे बैठे गुदा को संकुचित करें तथा ढीला छोड़ दें। ऐसा पांच से दस बार तक कर सकते हैं। 

हम को कितनी बार सिट्ज़ बाथ लेना चाहिए

ज्यादातर चिकित्सक प्रतिदिन सुबह-शाम सिकाई करने की सलाह देते हैं।  परेशानी अधिक होने पर उसे दिन में 3 बार भी कर सकते हैं।  अगर परेशानी अधिक नहीं है तो सुबह नहाते समय  सिट्ज़ बाथ लेना उचित रहता है। 

अपने चिकित्सक से कब संपर्क करें

अगर आपको लगता है कि आपकी परेशानी कम नहीं हो रही है तो तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क कर उनकी सलाह लेना न भूलें। 
यदि आपको तेज बुखार आ रहा हो, घाव  से पानी, मवाद अधिक रिस रहा हो, घाव अधिक लाल हो गया है या दर्द बढ  रहा हो, तो भी चिकित्सक से सलाह लेना उचित रहता है। 
यदि आप कोई नई समस्या को अनुभव कर रहे हो तो भी चिकित्सक से अपना परीक्षण तुरंत करवा लें
यदि आप कुछ पूछना चाहे तो मुझे 9837144287 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं

डॉ पुनीत अग्रवाल एमएस
सर्जन एवं गुदा रोग विशेषज्ञ प्रॉक्टोलॉजिस्ट

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रविवार, 5 सितंबर 2021

Hernia formed after laparoscopic surgery done elsewhere

 Today one case was operated in which patient was operated earlier for laparoscopic gall bladder stone surgery. Later patient developed incisional hernia on operation site.

Hernia repair surgery was done successfully. Patient underwent surgery well.




शनिवार, 4 सितंबर 2021

Anal Fissure - एनल फिशर, गुदा चीर, गुदाद्वार में घाव All you should know about it

 एनल फिशर, गुदा चीर,  गुदाद्वार में घाव

 एनल फिशर क्या होता है, इसका बचाव तथा उपचार 

गुदा मार्ग  में कोई भी परेशानी होने पर पीड़ित रोगी चिकित्सक से बवासीर का इलाज करने का आग्रह करता है।  वास्तव में बवासीर के अतिरिक्त भी अन्य कई बीमारियां हैं जो गुदा मार्ग पर हो सकती हैं - जैसे एनल फिशर, भगंदर, वार्ट, कैंसर, खुजली, खाज, नासूर आदि

एक गुदा रोग विशेषज्ञ अथवा प्रॉक्टोलॉजिस्ट ही बीमारी को सही प्रकार से पहचान सकता है।  यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बवासीर तथा अन्य रोगों का उपचार एवं चिकित्सा अलग-अलग है। 





एनल फिशर  के रोगी को शौच जाते वक्त गुदा में दर्द का अनुभव होता है।  कुछ रोगी  तीव्र जलन की भी शिकायत करते हैं।  प्रारंभ में यह दर्द शौच जाने के समय ही होता है।  धीरे-धीरे दर्द की तीव्रता बढ़ती जाती है।  कुछ समय पश्चात उपचार न लेने पर, दर्द शौच जाने के बाद भी होने लगता है।  मरीज घंटों तक इस दर्द को महसूस करता है।  बाद में शौच जाते समय प्रारंभ हुआ दर्द दिनभर ही बना रहता है।  दर्द के कारण रोगी को चक्कर आते हैं, उसकी टांगे कांपने लगती हैं।  रोगी शौच करने जाने से भी डरने  लगता है।  शौच  में बैठते ही वह उठ  खड़ा होता है, इससे बड़ी आत में मल  एकत्रित होकर  सूखने लगता है। 

कुछ रोगियों को मल के साथ तथा बाद में खून भी आता है।  यह खून प्रारंभ में मल के ऊपर एक लाइन की तरह लग कर आता है।  रोगी पूछने पर बताता भी है कि उसने मल के ऊपर रक्त  की लाइन बनी देखी है।  उपचार न लेने पर एनल फिशर का घाव गहरा होता जाता है।  इसमें से शौच के समय बहुत रक्त आता है। 

कुछ फिसर के रोगियों को गुदा मार्ग पर खुजली होती है।  उन्हें जोर से  खुजाने का मन भी करता है।  कुछ रोगियों को गुदा मार्ग पर भारीपन सा लगता रहता है। 

फिशर का उपचार न लेने पर किसके ऊपर बाहर की तरफ सूजन आने लगती है, जिसे हम 'सेंटिनल पाइल'  के रूप में जानते हैं।  यह वास्तव में बवासीर नहीं है, सूजन है।  रोगी इससे अनभिज्ञ इस  सूजन को बवासीर का मस्सा ही समझते हैं।  एक योग्य गुदा रोग विशेषज्ञ इसकी पहचान सही प्रकार से कर सकता है। 

घाव  के कारण गुदा मार्ग तनाव में बना रहता है।  रोगी अपनी गुदा को कसकर बंद रखता है।  इसी कारण गुदा का अंदरूनी परीक्षण करना भी संभव नहीं हो पाता है। 

हमारा गुदा मार दो तरह की गोल मासपेशियों से घिरा रहता है।  इसमें से अंदर वाली मांसपेशी हमेशा तनाव में रहती है तथा गुदा मार्ग को दबा कर रखती है, ताकि उसमें से वायु, पाद, मल  बाहर न निकल  सके।  

बाहरी मांसपेशी हमारे दिमाग के अनुरूप ढीली या कड़ी हो सकती है। 

फिशर होने का मूल कारण

फिशर होने का मूल कारण है - कब्ज।  

मल हमारी बड़ी आंतों में पड़े पड़े सूख जाता है तथा उसका आकार बड़ा हो जाता है।  इस प्रकार के मल  को जब हमारी आंतें  जोर लगा कर बाहर निकालती हैं, उस समय गुदा मार्ग छिल जाता है या फट जाता है।  गुदा मार्ग की झिल्ली केवल छिल भी  सकती है तथा वह पूरी तरह फट भी सकती है। 

अगर झिल्ली केवल ऊपर से ही छिली  होती है तो कब्ज को सही रखकर तथा अन्य दवाइयों से यह घाव भर सकता है।  अन्यथा हमको उसका ऑपरेशन ही करना पड़ता है। 

घाव के कारण गुदा मार्ग  को घेरी अंदरूनी मांसपेशियां  और अधिक तनाव में आ जाती हैं।  इस कारण रक्त का प्रवाह भी इस हिस्से में कम हो जाता है।  इससे भी फिशर का घाव भरने में परेशानी होती है।  ज्यादातर यह घाव पीछे की तरफ होते हैं।  बहुत कम लोगों में यह ऊपर की तरफ होते हैं। 

दवाइयों द्वारा उपचार

लगभग 80% एनल फिशर जो गहरे नहीं होते हैं दवाइयों द्वारा ठीक हो जाते हैं।  इसका उपचार कब्ज को सही करके ही संभव है।  कब्ज से फ़िशर  होता है, फिशर से और कब्ज होता है, कब्ज पुनः  फिशर के घाव को हरा कर देता है।  इस चक्र को तोड़कर तथा कब्ज का उपचार कर हम रोगी को रोग मुक्त कर सकते हैं। 

भोजन 

कब्ज से मुक्ति पाने के लिए हमें अधिक रेशे युक्त भोजन, फल तथा सलाद का सेवन करना चाहिए।  

रेशे युक्त भोजन के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें।  हम को कम से कम 3 से 4 लीटर पानी भी प्रतिदिन पीना चाहिए।  इसके बारे में भी उपरोक्त लेख में मैंने विस्तृत रूप से वर्णन किया है। 

सिट्ज़ बाथ 

फिशर में गुनगुने पानी से भरे टब में बैठकर सिकाई करने से भी बहुत आराम मिलता है।  सिकाई अंदरूनी मांसपेशी के तनाव को भी  कम करती है।  सिकाई करते समय हमारा गुदा मार्ग तथा कूल्हे  गुनगुने पानी में डूबे रहने चाहिए। 

इंजेक्शन द्वारा उपचार  

कुछ चिकित्सक बोटूलिनम टॉक्सिन के इंजेक्शन भी गुदा मार्ग  की मांसपेशियों में लगाते हैं।  लेकिन एक बार असर आने  पर, लगभग 3 महीने बाद इसका असर धीरे धीरे खत्म हो जाता है। 

मलहम 

कुछ मलहम भी  फिशर के लिए बाजार में उपलब्ध है।  लेकिन उनका प्रयोग चिकित्सीय सलाह के बिना कदापि भी नहीं करना चाहिए। 

ऑपरेशन 

लेजर द्वारा फिशर का ऑपरेशन सहजता से किया जा सकता है।  इससे दर्द भी बहुत कम होता है, शाम तक रोगी की छुट्टी भी हो जाती है। 


I am performing laser surgery for Anal Fissure


अगर आप मुझसे कुछ पूछना चाहे तो मुझे 9837144287 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।  

मेरी ईमेल है puneet265@gmail.com

डॉ पुनीत अग्रवाल MS 

लेज़र द्वारा बवासीर तथा फिशर का उपचार 

बेस्ट पाइल्स डॉक्टर ऑफ़ आगरा  


बवासीर होने के प्रमुख कारण तथा उनसे बचाव, Piles causes and methods to prevent them

बवासीर में क्या न खाएं और क्या ना करें। बवासीर में क्या परहेज करने चाहिए। What not to eat in Piles



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