बवासीर में क्या न खाएं और क्या ना करें। बवासीर में क्या परहेज करने चाहिए।
What not to eat in Piles, Foods to avoid in Piles
बवासीर देखने सुनने में भले ही एक छोटा सा रोग हो, पर वास्तव में यह एक जानलेवा बीमारी है। यह मुख्यतयः हमारी खराब जीवन जीवनशैली के कारण बनती है। सक्रिय जीवन शैली, स्वस्थ भोजन हमारे शरीर के लिए दो महत्वपूर्ण वरदान है।
अपने पिछले लेख में मैंने बताया था कि बवासीर से बचने के लिए हमें क्या खाना चाहिए तथा क्या-क्या करना चाहिए उसे पढ़ने के लिए यहां Click करें।
अब मैं आपको बताने जा रहा हूं कि हमें क्या क्या परहेज करना है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में परहेज से परहेज है, परंतु वास्तव में परहेज बेहद जरूरी होते हैं।
हमको निम्न भोज्य पदार्थों का परहेज करना चाहिए अगर सेवन करना भी हो तो इनका कम से कम मात्रा का सेवन करें।
१ चिकनाई, मिर्च, मसाले
२ धूम्रपान, शराब, तंबाकू
३ कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ
४ बेकरी उत्पादन
५ डिब्बाबंद खाना, जंक फूड्स
६ डेरी उत्पादन
७ रिफाइंड ग्रेन्स
८ कच्चे फल
९ ज्यादा नमक वाले खाद्य पदार्थ
१० आयरन युक्त दवाइयां
११ रेशे की भोजन में अधिकता
चिकनाई, मिर्च, मसाले
हमको अधिक तेल, वसा, मिर्च ,मसाले युक्त भोजन का नियमित सेवन नहीं करना चाहिए। हमको हल्का स्वस्थ भोजन करना चाहिए। खाने में सब्जियों के साथ सलाद, फल और साबुत अनाज होने चाहिए। खाना बनाने में कम से कम तेल, मक्खन, घी का प्रयोग करें। चिकनाई को बिल्कुल बंद ना करें, थोड़ी चिकनाई भी हमारी शरीर के लिए आवश्यक होती है।
अधिक मिर्च (हरी, लाल) मसाले खाने से पेट में तथा शौच के दौरान जलन की गंभीर समस्या बनती है। पेट भारी रहता है। गैस भी अधिक बनती है।
भारी खाना बवासीर की समस्या को और अधिक गंभीर कर देता है। अतः पूरी, कचौड़ी, समोसा, पकौड़ी, पराठा, पापड़, चाट, दालमोठ, नमकीन से दूर रहें। दावत तथा होटल के खाने से भी पूर्णतया परहेज करें।
धूम्रपान, शराब, तंबाकू, पान मसाला तथा गुटखा
धूम्रपान तथा शराब हमारी आंतों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह हमारी आंतों से पानी सोखते हैं। अधिक शराब पीने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इससे कब्ज और अधिक हो जाता है। शराब की जगह पानी, जूस, छाछ का अधिक से अधिक सेवन करें।
धूम्रपान हमारी आंतों तथा खाना पचाने वाले अंगों को नुकसान पहुंचाता है। धूम्रपान से गुदा में स्थित बवासीर तथा रक्त वाहिनिओं में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे मस्सों से खून अधिक रिसता है।
हमारी पाचन क्रिया को कमजोर करने के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है। इस कारण बवासीर ठीक होने में अधिक समय लगता है।
कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ
कैफ़ीन हमें चाय, चॉकलेट तथा कॉफी से मिलता है बवासीर में इन पदार्थों का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इससे कब्ज के लक्षण और अधिक बढ़ जाते हैं।
अतः कैफीन युक्त खानों तथा पेय का सेवन ना करें।
बेकरी में बने खाद्य पदार्थ
बवासीर में बेकरी में बनने तथा पकने वाले खाद्य पदार्थों का पूरी तरह परहेज करें। यह बवासीर में नुकसान पहुंचाते हैं। अधिकतर बेकरी उत्पादन रिफाइंड तेल से बने होते हैं जैसे:- ब्रेड, केक, पेस्ट्री, पैटीस, बंद आदि।
यह सभी पदार्थ कब्ज को बढ़ाते हैं अतः इनका सेवन ना करें।
डिब्बाबंद खाना जंक फूड्स
बवासीर में प्रोसैस्ड फूड, डीप फ्राइड फूड, ज्यादा तला हुआ खाना, जंक फूड्स, चिप्स, फ्रोजन मील, फास्ट फूड काफी नुकसान करते हैं। यह अत्यधिक नमक, चीनी एवं खराब चिकनाई से भरे होते हैं। यह हमारे पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। हमें कब्ज एवं अपच बन जाता है।
डेरी पदार्थ
दूध तथा दूध से बने उत्पाद हमारे पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। इनसे गैस अधिक बनती है, पेट में ऐठन होती है तथा कब्ज बन जाता है।
अतः दूध पनीर चीज का परहेज करें।
छाछ हमारे शरीर को फायदा पहुंचाती है अतः छाछ में काला नमक, भुना जीरा डालकर हम ले सकते हैं।
रिफाइंड ग्रेन्स
ये मुख्यतयः इन खाद्य पदार्थों से हमें मिलता है- सफेद चावल, सफेद ब्रेड, कुकी, केक, मैदा तथा मैदा से बने खाद्य पदार्थ।
इनमें चोकर अथवा रेशा ना के बराबर होता है। इनको खाने से कब्ज की समस्या बढ़ जाती है।
कच्चे फल
कच्चे फलों से हमें कब्जियत हो सकती है। इसके कुछ पदार्थ हमारी हाथों को इरिटेट भी करते हैं जैसे कच्चा केला आदि।
ज्यादा नमक वाले खाद्य पदार्थ
उन पदार्थों से परहेज करें जिन में नमक की मात्रा अधिक होती है जैसे चिप्स, भुनी मूंगफली, डिब्बाबंद खाने, पास्ता आदि।
आयरन युक्त दवाइयां
जिन दवाइयों का प्रयोग खून बढ़ाने के लिए किया जाता है उनसे भी कुछ लोगों को कब्ज हो जाता है। अतः कब्ज होने पर अपने चिकित्सक से तुरंत सलाह लें।
रेशे की अधिकता
कभी-कभी हम रेशे का अत्यधिक प्रयोग प्रारंभ कर देते हैं। अत्यधिक रेशा भी कुछ लोगों को माफिक नहीं आता है तथा पेट की परेशानी को बढ़ा देता है। इसका प्रयोग एक चिकित्सक की देखभाल में ही करें।
उपरोक्त भोज्य पदार्थों का परहेज कर न आप बवासीर से दूर रहते हैं बल्कि आपका शरीर भी अधिक स्वस्थ बना रहता है।
अगर आप मुझसे कुछ पूछना चाहे तो 9837144287 पर व्हाट्सएप करें। मेरे बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें
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बवासीर होने के प्रमुख कारण तथा उनसे बचाव
Piles causes and methods to prevent them. How to cure piles without operation
डॉ पुनीत अग्रवाल
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बवासीर हिंदी में और इंग्लिश में पाइल्स तथा आयुर्वेद में अर्श बोलते हैं
प्रकृति ने हमारी गुदा के अंदर मुलायम ऊतकों के तीन उभार - कुशन बनाये हैं। ये उभार हमारी गुदा का रास्ता अंदर से कस कर बंद रखते हैं तथा वक्त बेवक्त पाद या मल को बाहर नहीं निकलने देतें है । जब हम शौचालय में होते हैं तब ये उभार ढीले हो जाते हैं तथा वायु, पाद, मल आदि को बाहर निकलने देते हैं। जब यह ऊतक सही प्रकार से कार्य नहीं करते हैं या उनकी संरचना में परिवर्तन आ जाता है तब बवासीर अथवा पाइल्स बनना प्रारंभ हो जाते हैं।
कहने सुनने में बवासीर एक साधारण बीमारी लगती है। लेकिन कभी कभी ये भयानक रूप ले लेती है, और जानलेवा साबित होती है। समय रहते इससे बचाव करना अत्यंत आवश्यक है।
यहाँ पर मैं बवासीर के कुछ प्रमुख कारण बता रहा हूँ। साथ में ये भी बता रहा हूँ कि उनसे कैसे बचा जाये। एक बार बवासीर होने पर इन सावधानियों का और ज्यादा अमल में लाना चाहिये।
बवासीर होने के प्रमुख कारण
१ कब्ज या लंबे समय तक दस्तों का लगे रहना
२ आनुवांशिक
३ खाने में रेशे की कमी होना
४ शरीर का अधिक वजन होना, मोटापा
५ गर्भावस्था
६ हाईली प्रोसेस फूड को अधिक खाना
७ वह लोग जो बहुत देर तक एक ही जगह पर बैठे या खड़े रहते हैं
८ शौच के समय अधिक जोर लगाना
९ शौच में कमोड के ऊपर अधिक समय बिताना
कब्ज
बवासीर होने का सबसे प्रमुख कारण है कब्ज। यदि हमें लंबे समय तक कब्ज बना रहता है तो हमारी आंतों को शौच करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, बहुत जोर लगाना पड़ता है। जोर लगाने के कारण गुदा मार्ग के उभार प्रभावित होते हैं। वह ढीले पड़ने लगते हैं। उनमें नई रक्त वाहिनियां उत्पन्न हो जाती हैं। ज्यादा ढीले पड़ने पर ये उभार गुदामार्ग से शौच के समय बाहर भी आने लगते हैं। आकार ज्यादा होने पर मरीज को अपनी उँगलियों से उन्हें अंदर करना पड़ता है। इनके अंदर की रक्त वाहिनियाँ घर्षण के कारण फट जाती हैं तथा उनमें से रक्त भी आने लगता है। यह रक्त सुर्ख लाल रंग का होता है तथा धार एवं बूंद-बूंद करके बाहर आता है। सुर्ख लाल रंग होने के कारण यह अत्यंत भयानक दिखता है
इसके अतिरिक्त मरीज खुजली का अनुभव भी कर सकता है। कभी-कभी सफेद पानी जैसा चिपचिपा तरल पदार्थ भी मरीज को गुदाद्वार पर महसूस हो सकता है। इसे आंव या म्यूकस भी कहते हैं। ये भी बवासीर से ही रिसता है।
बवासीर में हमारी जीवन शैली तथा खान-पान का विशेष प्रभाव पड़ता है।अपनी दैनिक दिनचर्या तथा जीवन शैली में छोटे छोटे परिवर्तन करके हम कब्ज से छुटकारा पा सकते हैं। एक बार बवासीर पता चलने पर जीवन शैली में परिवर्तन करने आवश्यक हो जाते हैं। आप यह परिवर्तन बिना रोग का पता चले भी कर सकते हैं। इससे बवासीर रोग उत्पन्न ही नहीं होगा। इसके अतिरिक्त अन्य बहुत सारी बीमारियों के होने से भी आप बच जाएंगे।
हमको एक सक्रिय जीवन शैली का प्रारंभ करना है। दिनभर एक स्थान पर नहीं बैठे रहना है। चलते फिरते रहना है। यदि हमारा बैठने का कार्य है, तो भी हर थोड़ी थोड़ी देर बाद हम को उठकर टहलना चाहिए।
एक स्थान पर बैठे रहने से तथा टाइट फिटिंग कपड़े पहनने से हमारे शरीर के निचले हिस्से में रक्त एकत्रित होता चला जाता है। तथा धीरे-धीरे रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है। इस प्रकार बवासीर की शुरुआत हो जाती है।
एक्टिव रहने के साथ-साथ हमें नियमित व्यायाम भी करना चाहिए। व्यायाम के साथ साथ टहलना (वॉक) भी हमारी आंतों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जब हम चलते हैं, हमारी आंतें भी चलने लगती हैं।
हमको उस तरह के व्यायाम से बचना चाहिए जिनको करने से हमारे पेट के अंदर दबाव बढ़ता है। जैसे भारी वजन उठाना आदि। हमें योग, तैराकी तथा तेज तेज चलना चाहिए। यह सब हमारे वजन को भी नियंत्रित रखते हैं।
जल का अधिक सेवन
सबसे महत्वपूर्ण है पानी को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करना। हमें दिन भर में 3 से 4 लीटर तरल पदार्थों का सेवन करना ही चाहिए। सुबह उठते ही बिना कुल्ला किए तीन से चार गिलास गुनगुना पानी पियें। पानी घूँट घूँट कर के पीयें , एकदम जल्दी से ना पियें। तत्पश्चात दिन भर पानी पीते रहें। खाने से आधा घंटा पहले तथा 1 घंटे बाद तक भी हमें पानी नहीं पीना चाहिए। खाने के साथ पानी पीने से खाना पूरी तरह पच नहीं पाता है।
अगर कोई चिकित्सक या डाइटिशियन हमसे यह कहता है तो हमारा सर्वप्रथम रिस्पॉन्स होता है कि हम बहुत पानी पीते हैं। लेकिन यदि जब भी आप पानी पिए और इसको एक जगह लिखते चलें तो आपको पता चलेगा कि आप वास्तव में बहुत कम पानी पी रहे हैं।
पानी की जगह आप फलों का रस अथवा छाछ भी पी सकते हैं। नींबू के रस में थोड़ा काला नमक या शहद डालकर भी ले सकते हैं।
लम्बे दस्त
लंबे कब्ज के अतिरिक्त यदि लंबे समय तक मरीज को दस्त लगे रहे तब भी बवासीर के मस्से बन जाते हैं। बार बार शौच जाने से भी हमारी आंतें ढीली पड़ जाती हैं।
आनुवांशिक
कुछ मरीजों में मस्से अनुवांशिक होते हैं। उनके माता-पिता भी बवासीर से पीड़ित होते हैं तथा उनसे ही यह बीमारी उनके बच्चों में आती है।
बवासीर से बचने के लिए इस परिवार के सभी सदस्यों को इस लेख में बताई गयीं सभी सावधानियों का पालन करना चाहिए।
रेशे का सेवन - डाइटरी फाइबर रिच फूड
रेशा हमें वनस्पतियों से मिलता है। यह हमारे द्वारा खाई जाने वाली सब्जियों, फलों तथा अनाज से हमें मिलता है। इस रेशे को हमारी आंतें पचा नहीं पाती हैं तथा यह गुदाद्वार से मल के साथ बाहर निकल जाता है।
अपने भोजन में हमें धीरे-धीरे रेशे की मात्रा को बढ़ाना चाहिए। अगर आपको गैस ज्यादा बनती है या फिर पेट फूला सा रहता है तो अत्यधिक रेशे के सेवन से परेशानी बढ़ सकती है।
हमको प्रतिदिन लगभग 30 ग्राम रेशे का सेवन करना चाहिए। एकरसता से बचने के लिए भोज्य पदार्थों को बदल बदल कर खाएं।
सब्जियां
सब्जियों में रेशे की मात्रा प्रचुर मात्रा में होती है। निम्न सब्जियों को बदल बदल कर अपने स्वाद के अनुसार खाना चाहिए।
सलाद, सलाद की पत्तियां-लेट्यूस, कच्ची गाजर, पालक, खीरा आदि
फाइबर अथवा रेशा एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट होता है। अन्य कार्बोहाइड्रेट्स को शरीर चीनी में परिवर्तित कर देता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। लेकिन रेशा शरीर में पचता नहीं है, यह हमारे शरीर से बिना पचे मल में निकल जाता है।
मुख्यतः दो प्रकार के रेशे पाए जाते हैं घुलनशील रेशा तथा अघुलनशील रेशा
घुलनशील रेशा
यह हमारे शरीर में पानी में घुलकर जेल जैसा एक गाढ़ा सा पदार्थ बन जाता है। यह अधपचे खाने में मिलकर उस को आँतों मैं आगे बढ़ाने में मदद करता है। घुलनशील रेशे नियमित लेने से कब्ज नहीं होती है। रेशे के कारण खाद्य पदार्थ तेजी से आँतों में आगे बढ़ते रहते हैं। वह एक ही जगह पर पड़े पड़े सूखते नहीं रहते हैं
ये ओट्स, जौ, राजमा, मसूर की दाल, सेब, संतरा, शकरकंदी, रेस्पवेरी आदि से हमें मिलता है।
अघुलनशील रेशा
इस प्रकार के रेशे पानी को सोखते जाते हैं तथा खाने के कूड़े करकट को समेट कर बाहर निकालने में मदद करते हैं। यह खाद्य पदार्थों के बाहरी छिलके से बनते हैं जैसे- सेब, नाशपाती, आलू, साबुत गेहूं की ब्रेड, गेहूं का चोकर, मक्का, राजमा, सोते की गई पत्तेदार तथा अंकुरित सब्जियां।
वजन
अधिक वजन होने से हमारे पेट पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। इसलिए मोटे लोगों में बवासीर होने की संभावनायें अधिक होती हैं। अपने वजन को बढ़ने ना दें। उचित व्यायाम तथा समुचित भोजन से हम अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं।
गर्भावस्था
इस अवस्था में शरीर के निचले हिस्से पर दबाब बढ़ता है। शरीर के खून भी सही तरह से निकासी नहीं हो पाती है।
ज्यादातर महिलाएं बवासीर की शिकार हो जाती हैं। बच्चे के जनम के बाद उन्हें बहुत सावधानियां बरतनी चाहिए।
हाईली प्रोसेस फूड
खाने को तैयार खाद्य पदार्थ, डिब्बा बंद भोजन, पोटैटो चिप्स, फ़ास्ट फूड्स, फ्रोजेन फूड्स, तले हुए भोज्य पदार्थ बहुत भारी होते हैं तथा आसानी से नहीं पचते हैं। इनमें नमक एवं चीनी ज्यादा होती है, गन्दी चिकनाई होती है। ये हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनसे हमारा खाना सही तरह से पच नहीं पता है तथा कब्ज की शुरुआत हो जाती है।
इस तरह के भोज्य पदार्थों को हमें सेवन करने से बचना चाहिए।
शौच
शौच जाना हमारे शरीर की एक आदत सा होता है। लगभग प्रतिदिन हमको उसी नियमित समय पर शौच जाने का मन करता है। जब कभी आपको शौच लगे तो तुरंत शौच करने जाना चाहिए, कभी भी इसको टालना नहीं चाहिए। शौच न करने पर मल अंदर ही अंदर सूखता रहता है। बाद में शौच करने पर आपकी आँतों को अतिरिक्त बल का प्रयोग करना पड़ता है। यह भी बवासीर की शुरुआत हो सकती है।
शौच करते समय अतिरिक्त बल का उपयोग करने से गुदा मार्ग के द्वार पर उपस्थित उभारों की नसें फूलने लगती है। नसों के छिलने से खून आता है।
शौच के समय कमोड के ऊपर लंबे समय तक बैठना नहीं चाहिए। कुछ लोग वहां अखबार अथवा किताबें पढ़ते रहते हैं, मोबाइल पर समय व्यतीत करते हैं। यह सर्वथा अनुचित है। ज्यादा समय तक कमोड पर बैठने से बवासीर बनने लगती है।
ज्यादा भारी वजन उठाने से, बार बार खांसी आने से या गर्भावस्था में भी पेट में दबाव बढ़ जाता है। यदि यह दबाव कम नहीं होता है तो बवासीर के मस्से बनते चले जाते हैं। उनका आकार बड़ा तथा भयावह भी हो जाता है। जब यह मस्से छिल जाते हैं तो इनसे तेज रक्त भी मल के समय आ सकता है।
बवासीर से पीड़ित मरीज़ खून आने के भय से शौच ही नहीं जाते हैं। यदि शौच जाते भी हैं तो खून देखकर पूरी तरह शौच करे बिना बीच में ही उठ जाते हैं। बड़ी आंतों में मल सूखता रहता है तथा उसे बाहर निकलने में मरीज को फिर अतिरिक्त बल लगाना पड़ता है। फिर से खून आता है तथा मरीज सही नहीं हो पाता है।
बवासीर लाइलाज बीमारी नहीं है। लेकिन है तो एक बीमारी। समय रहते इससे बचाव करने में ही समझदारी है।
अगर आप मुझसे कुछ पूछना चाहें तो 9837144287 पर व्हाट्सएप्प कर सकते हैं।
इसके लिए मरीज को अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करने होंगे। यदि वह इन परिवर्तनों को अपनी जीवनशैली में अपनाता है तो शनैः-शनैः सुधार संभव है। परिणाम के लिए मरीज को नियमित रूप से कुछ परिवर्तनों को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। एक बार परिणाम दिखने लगे तो भी उसे निरंतर अभ्यास करते रहना है। अपने प्रयासों को बीच में ही रोकना नहीं है।
व्यायाम
एक निरोगी काया में ही हमारा मन प्रसन्नचित्त रह सकता है। नियमित व्यायाम द्वारा हम अपने शरीर को रोगों से दूर रख सकते हैं। समुचित व्यायाम से हमारे शरीर का प्रत्येक अंग स्वस्थ बना रहता है। तन के साथ-साथ हमारा मन भी दिनभर प्रफुल्लित बना रहता है। अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों से अब यह पूर्णतया सिद्ध हो चुका है कि 30 मिनट व्यायाम हफ्ते में 5 दिन करने से शीघ्रपतन के समय में निश्चित वृद्धि होती है। इन मरीजों में योनि के अंदर घर्षण का समय भी धीरे-धीरे बेहतर होता चला जाता है।
कीगल व्यायाम पेड़ू अथवा पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों का निश्चित व्यायाम
पेड़ू अथवा पेल्विक फ्लोर हमारे दोनों कूल्हों के बीच का हिस्सा तथा पेट का सबसे निचला हिस्सा होता है। इसकी मांसपेशियों से होकर ही हमारी मूत्र नली तथा गुदा मार्ग (स्त्रियों में योनि मार्ग भी) बाहर निकलते हैं। यह मांसपेशियां इन अंगों पर नियंत्रण रखती हैं। कीगल व्यायाम करने से यह मांसपेशियां हष्ठपुष्ट बनती है। इस व्यायाम को करते समय इन मांसपेशियों को कुछ समय के लिए हम सिकोड़ते हैं, फिर ढीला छोड़ देते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे हम वक्त बेवक्त पाद आने पर या पेशाब महसूस करने पर उसको रोकते हैं।
इस व्यायाम के बारे में और जानने के लिए यहां क्लिक करें
कीगल व्यायाम शीघ्रपतन के मरीजों के लिए विशेष सहायक है। उनमें पेड़ू की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। उन के लिंग में रक्त का प्रवाह बढ़ता है। उनकी सेक्स क्षमता में भी सुधार आता है।
वैज्ञानिक शोधों में भी यह पता चला है कि नियमित कीगल व्यायाम करने वाले पुरुषों में सेक्स के समय में निश्चित सुधार होता है। लेकिन समुचित परिणाम के लिए नियमित कीगल व्यायाम लंबे समय तक करना अत्यंत आवश्यक है
सेक्स थेरेपी
सेक्स थेरेपी में सेक्सोलॉजिस्ट का विशेष स्थान है। वे मरीज की हर समस्या को ध्यान पूर्वक समझकर उनके लिए समस्या दूर करने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक मरीज में समस्या का कारण अलग होता है। समस्या की जड़ तक जाकर ही इसका उपचार संभव है।
शीघ्रपतन के मरीज सेक्स पूर्ण संतुष्टि के साथ नहीं कर पाते हैं। इसके कारण वे एक अनुचित दबाव को हर समय महसूस करने लगते हैं। इस दबाव के कारण उनकी सेक्स क्षमता और घटती चली जाती है।
थेरेपी के प्रारंभ में पुरुष को इस अतिरिक्त दबाव से सेक्सोलॉजिस्ट को बचाना चाहिए। अगर पुरुष के मन में सेक्स को लेकर दबाव नहीं है तो उसका प्रदर्शन बेहतर हो जाता है। अगर पुरुष सेक्स करते समय शीघ्रपतन को अनुभव करता है तो उन्हें सेक्स करने से मना किया जाता है, जब तक सेक्स करने का समय सुधर नहीं जाता है। इस समय पुरुष चाहे तो स्त्री को अन्य तरीकों से संतुष्ट कर सकता है जैसे ओरल सेक्स हाथों द्वारा स्त्री को उत्तेजित करना आदि।
थेरेपी के अगले चरण में दंपत्ति को स्टॉप-स्टार्ट या स्क्वीज़-पॉज तरीके को अपनाने की सलाह दी जाती है इस तकनीक को मास्टर तथा जॉनसन ने करीब 50 वर्ष पूर्व विकसित किया था।
थेरेपी के समय स्त्री पुरुष को उत्तेजित करती है। वह लिंग को छूकर या अन्य विधियों का इस्तेमाल कर सकती है। जिस समय पुरुष को महसूस हो कि उसका वीर्य स्खलित होने वाला है वह अपनी पत्नी को इशारा करता है। इशारा पाते ही वह अपने पति को उत्तेजित करना बंद कर देती है तथा उसके टोपे (glans penis )के पीछे कस कर दाबती है। उसको इतना जोर लगाना है कि पुरुष को बहुत अधिक दर्द ना हो, हां यह असुविधाजनक हो सकता है। इतना जोर से नहीं भी नहीं डालना है कि पुरुष को अत्यधिक दर्द हो या लिंग को नुकसान पहुंचे। जब पति को लगे कि वीर्य स्खलित होने का समय निकल गया है तो पत्नी दुबारा पुरुष को उत्तेजित करना प्रारंभ कर सकती है। इस प्रक्रिया को लगभग दस बार या अधिक दुहराया जा सकता है। कुछ समय के बाद पुरुष को परिवर्तन अनुभव होने लगेगा।
इस तकनीक को अपनाने के बाद अगले कदम की तरफ बढ़ना है। स्त्री पुरुष दोनों एक दूसरे की तरफ मुंह करके बैठते हैं। स्त्री की टांगें पुरुष की टांगों के ऊपर होनी चाहिए। अब पहले की भांति वह पुरुष के लिंग को सहला कर उत्तेजित करती है। स्त्री लिंग को अपनी योनि के समीप भी लाती है। अधिक उत्तेजना आने पर वह लिंग को कसकर दबाती है।
अंत में दंपत्ति सेक्स करता है। सेक्स के समय स्त्री ऊपर होती है तथा पुरुष नीचे।
सेक्स के समय जब पुरुष अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव करें तथा उसे लगे कि वह स्खलित होने वाला है, स्त्री लिंग को पूर्व की भांति कसकर दबाती है। कुछ देर बाद पुनः सेक्स प्रारंभ करते हैं।
निश्चय ही यह एक थकाने तथा ऊबने वाली प्रक्रिया है, लेकिन इसके परिणाम दूरगामी हैं तथा पुरुष में स्खलन के समय में निश्चित वृद्धि महसूस होती है
एक अन्य तरीके में पुरुष अपने लिंग को योनि में प्रवेश कराकर घर्षण प्रारंभ करता है लेकिन अत्यधिक उत्तेजना के समय घर्षण को रोक देता है तथा उत्तेजना कम होने पर पुनः घर्षण प्रारंभ करता है।
उपरोक्त प्रक्रिया को अपनाते समय कभी-कभी पुरुष स्खलित हो जाता है। अपना मनोबल ना तोड़े तथा अपना अभ्यास पूर्ववत चालू रखें।
अगर दंपत्ति जवान हैं तो प्रथम बार वह नियमित सेक्स करते हैं। शीघ्रपतन होने के बाद वह पुनः सेक्स का प्रयास करते हैं। यह देखा गया है कि दूसरी बार वह अधिक देर तक सेक्स कर पाते हैं
एलोपैथिक दवाइयां
आज कुछ दवाइयां हमारे पास है जो शीघ्र पतन में सहायक होती हैं। इन दवाइयों को लेने के बाद मरीज का ध्यान रखना आवश्यक होता है क्योंकि इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स ज्यादा होते हैं। एक योग्य चिकित्सक की देखरेख में ही इन दवाइयों का सेवन करें। कभी भी अपने आप इन दवाइयों का सेवन ना करें। आजकल इंटरनेट पर दवाइयों का नाम देखकर कुछ लोग अपने आप अपना इलाज प्रारंभ कर देते हैं। मैं इस तरह के इलाज को बिल्कुल भी अनुमति नहीं देता हूँ।
आयुर्वेदिक दवाइयां शीघ्र पतन में विशेष सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रही हैं। इन दवाइयों के अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं इनके बारे में, मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा।
ऑपरेशन
शीघ्रपतन में किसी भी प्रकार के ऑपरेशन का कोई फायदा नहीं है
शीघ्रपतन लाइलाज नहीं है। एक योग्य सेक्सोलॉजिस्ट, चिकित्सक से बिना झिझके मिलें, हो सकता है कि आपकी जिंदगी बदल जाये।
अगर आप मुझसे कुछ पूछना चाहे तो मुझे ईमेल कर सकते हैं
puneet265@gmail.com या व्हाट्सएप 9837144287 पर कर सकते हैं
पेल्विक फ्लोर हमारे पेट के सबसे निचले हिस्से में मिलने वाली मांसपेशियां है। इसमें से होकर हमारी मूत्राशय नली तथा बड़ी आंत का आखरी हिस्सा गुदा तथा रेक्टम बाहर निकलते हैं। महिलाओं में गर्भाशय तथा वेजाइना भी बाहर निकलती है।
जब पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियां संकुचित होती है तो वह सब मांसपेसियों पर दबाव बनाती है। मजबूत मांसपेशियां इन सभी अंगों को अच्छी तरह सहारा देती हैं तथा वक्त बेवक्त पेशाब तथा पाद , मल रोकने में सहायता करती है। इन मांसपेसियों को हम कुछ कसरत द्वारा मजबूत बना सकते हैं। इससे उनमें आई हुई कमजोरी भी दूर हो जाएगी। वह एक बार फिर से प्रभावी ढंग से काम करने लगेंगी।
ट्रेनिंग प्रशिक्षण
ट्रेनिंग शुरू करने से पहले आपको यह मालूम होना चाहिए कि आपको पेल्विक फ्लोर की किन मांसपेशियों को मजबूत बनाना है। बाथरूम में जाकर पेशाब करना प्रारंभ कीजिए। जब पेशाब अच्छी तरह आ रही हो उस समय पेशाब को रोकने का प्रयास कीजिए। इसे रोकने में आपने अपनी मांसपेशियों का उपयोग किया है आपको उन्हीं मांसपेशियों को मजबूत बनाना है। शुरुआत में इस प्रक्रिया को दुहरा कर आप उन मांसपेशियों को अच्छी तरह से पहचान सकते हैं। मांसपेशियों की सही पहचान अच्छे परिणाम के लिए आवश्यक है।
एक बार जब आप इसे करना सीख जाएं तो बैठे-बैठे ही इस प्रक्रिया को दुहरायें। पेशाब करते हुए इस कसरत को नियमित तरीके से बिल्कुल भी ना करें, इससे नुकसान हो सकता है।
अगर आप अभी भी मांसपेशियों को सही तरह से नहीं पहचान पा रहे हैं तो अपनी एक उंगली को गुदाद्वार के अंदर डाल लें। अब इसी अवस्था में रहते हुए इस तरह जोर बनाएं कि आप पेशाब को रोक रहे हैं या पाद आने को रोक रहे हैं। यह भी सभी वही मांसपेशियां हैं जिन्हें हम मजबूत बनाना चाहते हैं।
एक बात का विशेष ध्यान रखें जिस समय आप अपनी मांसपेशियों को मजबूत बना रहे हो उस समय आपकी पेट की,जांघो की तथा कूल्हों की मांसपेशियां सामान्य रहनी चाहिए। अगर पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों का कार्य यह मांसपेशियां कर देंगी तो हमारा कार्य सिद्ध नहीं होगा।
पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को प्रशिक्षण करने का तरीका
सर्वप्रथम अपनी पेशाब की थैली को मूत्र त्याग कर खाली कर दे। ऊपर बताई गई विधि द्वारा मांसपेशियों को संकुचित करें। संकुचित करते समय ऊपर अंदर की तरफ उन्हें खीचें तथा लगभग 10 सेकंड तक रुके रहें। तत्पश्चात 10 सेकंड के लिए मांसपेशियों को ढीला छोड़ दें। इस प्रक्रिया को दस बार दोहराएं। दिन में 3 से 5 बार तक इस कसरत को दोहराना चाहिए।
प्रशिक्षण के समय ध्यान रखने वाली सावधानियां
इस कसरत को बताई हुई विधि द्वारा ही करें। अच्छे परिणाम की चाहत में कसरत ज्यादा ना करें। इससे मांसपेशियां थक जाएंगी तथा वांछित फल भी प्राप्त नहीं होगा।
कसरत करते समय यदि आपको अपने पेट में, जाघों में असुविधा या पीड़ा महसूस हो तो इसका मतलब है कि आप कसरत सही प्रकार से नहीं कर रहे हैं। कसरत करते समय गहरी गहरी सांस लेते रहें तथा शरीर को ढीला छोड़ दें।
कसरत करते समय फल की इच्छा जल्दी ना करें। इसके परिणाम धीरे-धीरे कुछ हफ्तों या महीनों तक जाकर मिलते हैं।
सही प्रकार से कसरत करने पर यह शीघ्रपतन तथा नपुंसकता में भी खासतौर से फायदेमंद रहती है।
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शीघ्रपतन क्या है इसके क्या कारण होते हैं और उसको कैसे पहचाने
PME Premature Ejaculation, Rapid or Quick Ejaculation
चालीस वर्ष से कम उम्र के पुरुषों में सबसे आम यौन रोग अथवा सैक्स रोग है शीघ्रपतन जिसे हम पीएमई अथवा प्रीमेच्योर इजेकुलेशन के नाम से भी जानते हैं। लगभग हर दूसरा व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी समय इस रोग को अनुभव करता है।
शीघ्रपतन पुरुषों को होने वाली एक सेक्स अथवा यौन समस्या है। इस अवस्था में सेक्स करते समय चरम आनंद पर पहुंचने से पहले ही मरीज का वीर्य स्खलित हो जाता है। इस कारण मरीज में असंतुष्टि, हीन भावना, ग्लानि आ सकती है। विभिन्न नकारात्मक विचार आने के साथ-साथ रोगी के अपने साथी के साथ संबंधों में तनाव भी आ सकता है।
सेक्स समस्याओं के संबंध में फैली भिन्न-भिन्न भ्रान्तियों के चलते मरीज किसी योग योग्य चिकित्सक से मिलने में झिझक महसूस करता है। शर्म के कारण वह अपने संबंधियों तथा मित्रों से भी कोई चर्चा नहीं कर पाता है। बीमारी शनै शनै बढ़ती चली जाती है तथा आगे चलकर इस कारण मानसिक अवसाद अथवा डिप्रेशन तक मरीज को हो सकता है। कभी-कभी मरीज झोलाछाप अथवा अयोग्य वैद्यों के हत्थे चढ़ जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में ही उचित इलाज करवा लिया जाए तो मरीज इस खतरनाक स्थिति तक नहीं पहुंच पाता है।
शीघ्रपतन के कारण
शीघ्रपतन के मुख्य कारण हम नहीं जानते हैं। अभी भी वैज्ञानिकों द्वारा इस पर रिसर्च चल रही है, लेकिन कुछ ऐसे जोखिम तत्व हैं जिनके होने पर शीघ्रपतन होने की सम्भावनाएं ज्यादा हो जाती है।
एक- हमारे मस्तिष्क में सेरोटोनिन नाम का केमिकल होता है। इसकी असामान्य मात्रा शीघ्रपतन का कारण हो सकती है।
दो- कुछ हारमोंस के असामान्य स्तर पर भी शीघ्रपतन होने का कारण हो सकते हैं- लूटिनाइज़िंग हार्मोन, प्रोलेक्टिन तथा थायराइड हार्मोन।
तीन- जनन तंत्र में सूजन तथा संक्रमण होना, जैसे प्रोस्टेट, मूत्रमार्ग यूरिथ्राइटिस।
चार- वह रोग जो शरीर की नसों को प्रभावित करते हैं।
पांच- गुर्दा तथा मूत्र रोग।
छै- वेरीकोसील
सात- ड्रग्स जैसे एम्फ़ैटेमिन, कोकीन तथा अन्य डोपामिनर्जिक दवाइयां।
देखा जाए तो शीघ्रपतन कोई निश्चित बीमारी नहीं है। यह पुरुष तथा स्त्री के कामोत्तेजना की चरम अवस्था पर पहुंचने के अंतर के कारण महसूस होती है। सेक्स के दौरान घर्षण के समय को लेकर कई रिसर्च हुई है। योनि में लिंग के प्रवेश से लेकर स्खलित होने का समय प्रत्येक पुरुष के लिए भिन्न भिन्न होता है। कुछ पुरुष आधे, एक या दो मिनट तक उत्तेजित अवस्था में रहकर घर्षण कर पाते हैं। दूसरी तरफ कुछ पुरुष पांच, दस या पंद्रह मिनट तक सक्रिय रहते हैं। किसी भी अवस्था में यदि स्त्री तथा पुरुष दोनों चरम आनंद का अनुभव करते हैं या बिना चरम आनंद के भी संतुष्ट हैं तो उपचार की आवश्यकता नहीं है। अगर पुरुष एक मिनट में स्खलित हो जाता है तथा दंपत्ति संतुष्ट है तो किसी इलाज की आवश्यकता नहीं है। इसके विपरीत दस मिनट के बाद स्खलित होने पर भी यदि दंपति संतुष्ट नहीं है तो इसे शीघ्रपतन कहा जाएगा। जैसे मैंने पहले भी लिखा है कि घर्षण का समय केवल आनुपातिक है तथा प्रत्येक दंपत्ति के लिए भिन्न-भिन्न है।
शीघ्रपतन दो प्रकार से प्रारंभ होता है। प्रथम प्रकार में यह मरीज को उस समय अनुभव होता है जब वह पहली बार सेक्स प्रारंभ करता है। द्वितीय प्रकार में एक संतुष्ट एवं सामान्य सेक्स लाइफ व्यतीत कर रहे दंपति में पुरुष इस बीमारी को अनुभव करना प्रारम्भ करता है।
प्रथम प्रकार के पुरुषों में यह मरीज की रुग्ण मानसिक दशा तथा मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होती है। अगर रोग ग्रसित व्यक्ति सेक्स को लेकर प्रारंभ से ही उदिग्न रहता है, या सेक्स को लेकर एक अनजान भय उसके अंदर उत्पन्न हो जाता है अथवा उसके शुरुआती सेक्स अनुभव अच्छे नहीं रहते हैं तो भी वह एक हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। यह उसके तन मन को प्रभावित करती है। यह भावनाएं उसके भविष्य में सेक्स संबंध बनाने की प्रक्रिया पर गलत असर डालती हैं। एक बार शीघ्रपतन का अनुभव होने पर वह और ज्यादा उदिग्न हो जाता है, और उसका मन विचलित बना रहता है।
निम्न अनुभव भी मरीज को किसी हद तक प्रभावित करते हैं- सेक्स के समय मरीज की अस्थिर मानसिक स्थिति तथा मनोवैज्ञानिक परेशानियां, उसके अंतर्मन की चिंतायें, पिछले सेक्स के वे अनुभव जिनमें उसे कटु अनुभव हुआ हो, मरीज के अपने परिवारीजनों, मित्रों तथा वरिष्ठ साथियों से संबंधों में तनाव, कार्य के प्रति उसका उदासीन रवैया, सेक्स के प्रति उसके नकारात्मक विचार, मरीज की अपनी महिला मित्र के साथ कटु अनुभव। इन तथ्यों की जानकारी चिकित्सक तथा सेक्सोलॉजिस्ट को उपलब्ध होने पर उपचार करने में आसानी होती है
जिन पुरुषों में शीघ्रपतन की समस्या शुरुआत से नहीं होती है उनमें ये अवस्थायें शीघ्रपतन का कारण हो सकती हैं- नपुंसकता, सेक्स को लेकर मरीज के अंदर उत्पन्न व्यग्रता, सेक्स या किसी अन्य विषय को लेकर मानसिक उलझन, नशे का सेवन- ड्रग्स, शराब आदि।
मरीज को ध्यान पूर्वक यह विचारना होगा कि ऐसी कौन सी नई परिस्थितियां उत्पन्न हुई जिसकी वजह से शीघ्रपतन आरंभ हुआ। इन मरीजों में सभी तत्वों की विस्तृत जानकारी होना आवश्यक है क्योंकि इनमें से कोई भी कारण शीघ्रपतन आरंभ कर सकता है। कुछ मुख्य कारण है मरीज के पिछले तथा नये सेक्स साथी, उनसे मरीज के संबंध कैसे हैं, क्या मरीज की सेक्स क्षमता में परिवर्तन हुआ है, नपुंसकता, क्या सेक्स के समय उसका साथी पूर्ण सहयोग करता है, सेक्स साथी की मरीज के साथ सभी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रतिक्रियायें।
इन मरीजों की मूल्यांकन में निम्न तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है-
एक- नपुंसकता या इरेक्टाइल डिस्फंक्शन
दो- मरीज द्वारा किसी दवाई का प्रयोग, खासतौर पर मानसिक रोगों के लिए दी जाने वाली दवाइयां। यह दवाइयां शरीर के हर अंग को प्रभावित करती हैं।
तीन- मरीज द्वारा किसी नशे का आदी होना
चार- मरीज की महिला मित्र का बहुत देर में चरम स्थिति पर पहुंचना
शीघ्रपतन का सबसे गहरा असर मनोवैज्ञानिक होता है। जो पुरुष तथा स्त्री दोनों में मानसिक अवसाद या डिप्रेशन का कारण हो सकता है। वे चिड़चिड़े हो सकते हैं। मानसिक तनाव के साथ-साथ यह स्थिति उनकी शारीरिक क्षमता पर भी प्रभाव डालती है।
अगर दंपत्ति गर्भधारण का प्रयास कर रहे हैं और अगर पति सेक्स से पहले ही स्खलित हो जाए तो गर्भधारण करना संभव नहीं हो पाता है। इसके लिए कृत्रिम गर्भाधान ही उनके सामने एक मात्र उपाय यह जाता है।
वैज्ञानिक शीघ्रपतन पर तेजी से रिसर्च कर रहे हैं लेकिन वह किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। एक थ्योरी के अनुसार टेस्टोस्टरॉन की अधिकता से भी शीघ्रपतन संभव है। एक रिसर्च के अनुसार प्रॉस्टेट तथा एपिडिडमिस में संक्रमण के कारण भी यह संभव है।
अब तक की गई रिसर्च में मानसिक कारणों को ही शीघ्र पतन का प्रमुख कारण माना गया है लेकिन इसको भी हम पूरी निश्चिंता के साथ नहीं कह सकते हैं।
हस्तमैथुन का प्रभाव
बचपन तथा युवावस्था में लड़के छुप-छुपकर हस्तमैथुन करते हैं। जहां उनका मकसद जल्दी से जल्दी वीर्य को बाहर निकालने से होता है। ज्यादा समय लगने पर उन्हें डर रहता है कि उन्हें कोई देख ना ले। वे पकड़े न जाए। जब वे किसी साथी से संपर्क में आते हैं या उनका विवाह होता है तो भी सेक्स का उनका वही क्रम ही शरीर चलाता रहता है तथा आए इस बदलाव को पहचान नहीं पाता है। हस्तमैथुन का संभवत इन मरीजों में गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
यह भी एक निश्चित तथ्य है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा चरम सीमा पर काफी देर बाद पहुंचती हैं। यदि पुरुष तथा महिला के चरम सीमा पर पहुंचने के समय में अंतर होता है तो उन्हें शीघ्रपतन से पीड़ित माना जा सकता है। स्त्री तथा पुरुष दोनों के चरम सीमा तथा स्खलित होने का समय मालूम करना भी इलाज के लिए अति आवश्यक है।
जिन लड़कों तथा पुरुषों में शुरुआत से ही शीघ्रपतन होता है या जिन में पुरुष ने कभी सामान्य सेक्स को अनुभव ना किया हो ऐसे लोगों में गंभीर भावनात्मक तथा मानसिक कारण होते हैं। यह बचपन में हस्तमैथुन के कारण या बचपन /युवावस्था में सेक्स के दर्दनाक अनुभवों के कारण होते हैं। यदि इन सभी कारणों को ध्यान में रखा जाए तो मरीज का उपचार संभव है
जो पुरुष बाद में शीघ्रपतन को अनुभव करते हैं उनमें सेक्स प्रदर्शन की चिंता मुख्य कारण होता है। अपने साथी को संतुष्ट न कर पाने का डर मरीज की चिंता का प्रमुख कारण होता है। सेक्स के समय पुरुष को यह डर लगा रहता है कि उसके लिंग का तनाव पूर्ण समय तक बना रहेगा अथवा नहीं तथा यह सोचकर वह शीघ्रपतन का शिकार हो जाता है। ऐसी हालत में मरीज इस बात की स्वीकारोक्ति नहीं करता है कि उसके लिंग का तनाव कम हो रहा है, वह इस बात पर जोर देता है कि वह अपने साथी द्वारा ज्यादा उत्तेजित हो गया था और शीघ्रपतन का शिकार हुआ।
कभी-कभी नपुंसकता शीघ्रपतन का मुख्य कारण नहीं होती है। कुछ स्त्रियां सेक्स घर्षण से चरम सीमा पर नहीं पहुंच पाती है, उन्हें उत्तेजित होने के लिए सीधे क्लाइटोरिस को उत्तेजित करना आवश्यक होता है। इस बात को वह अपने पुरुष साथी से नहीं कह पाती हैं और बात को घुमा फिरा कर ही कहती रहती है।
शीघ्रपतन के मरीजों में सेक्सोलॉजिस्ट इलाज प्रारंभ करने से पूर्व निम्न जानकारियां मालूम करना चाहता है जो मरीज की सेक्स लाइफ को प्रभावित कर रही होती हैं।
*मरीज के सेक्स साथी के बारे में समस्त जानकारियां- क्या वह मरीज के साथ सेक्स करते समय सहज है? उसको कोई अन्य सेक्स बीमारी तो नहीं है? क्या वह पूर्णतया स्वस्थ है? क्या उसका मानसिक स्तर मरीज के लिए असामान्य है?
*क्या मरीज के अपने साथी से मधुर संबंध है? क्या मरीज या उसका साथी किसी मानसिक रोग, तनाव या अवसाद से ग्रसित है?
*क्या मरीज का कार्य संतुलित है? कार्यस्थल पर कोई तनाव तो नहीं है? क्या मरीज को नौकरी जाने का डर निरंतर तो नहीं बना हुआ है?
*क्या मरीज और उसके साथी की सेक्स इच्छाएं एक सी है? यदि सेक्स के तरीके को लेकर दोनों की राय एक सी नहीं है तो यह भी एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है
*क्या मरीज और उसके साथी की सामाजिक मान्यताएं सेक्स को लेकर एक सी हैं? क्या उसको लेकर वे अपने ऊपर अतिरिक्त बंधन तो नहीं महसूस करते हैं?
*क्या मरीज और उसका साथी किसी अन्य बीमारी से ग्रसित है? क्या वे दोनों नशे का सेवन करते हैं? यदि करते हैं तो नशे की मात्रा क्या है?
*क्या गर्भधारण को लेकर दंपत्ति में कुछ तनाव है यह गर्भधारण करने को लेकर भी हो सकता है या अनचाहा गर्भ ठहर जाए यह सोचकर भी।
अमूमन आम चिकित्सकों को सेक्स बीमारियों का इलाज करने का अनुभव नहीं होता है इसीलिए सेक्सोलॉजिस्ट का अनुभव यहां काम आता है। मेरी सलाह है कि इसी तरह की कोई भी परेशानी होने पर तुरंत सेक्सोलॉजिस्ट से ही संपर्क करें।
शीघ्रपतन पर मेरे आगे के ब्लॉग भी संपूर्ण जानकारी के लिए पढ़ते रहें।
सेक्स मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, यद्यपि इसके बारे में खुलकर कोई बात नहीं करना चाहता। अगर हम बात करते भी हैं तो पर्दे के पीछे खुसर पुसर करके ही। समाज का भय अथवा शर्म सभी को सेक्स के बारे में खुलकर बोलने से रोकती है। महिलाएं ही नहीं अपितु पुरुष भी सेक्स के बारे में खुलकर नहीं बोल पाते हैं।
सेक्स के बारे में भिन्न-भिन्न भ्रांतियां भी समाज में फैली हुई है, क्योंकि अगर मन में सेक्स को लेकर कोई उलझन है तो उसका समाधान नहीं हो पाता है।
भारतवर्ष में काफी पुरुष तथा महिलाएं सेक्स समस्याओं से पीड़ित हैं। एक रिसर्च पेपर के अनुसार लगभग 10% लोग किसी न किसी तरह की समस्या के शिकार हैं। यह नंबर बहुत चौंकाने वाला है। क्योंकि सेक्स समस्याओं के लिए योग्य चिकित्सक नहीं मिल पाते हैं इसलिए लोग झोलाछाप चिकित्सकों के हत्थे चढ़े जाते हैं।
आज मैं आपसे उन मुख्य समस्याओं के बारे में चर्चा करूंगा जिससे ज्यादातर लोग कभी ना कभी परेशान होते हैं। उचित परिणाम न निकलने पर मरीज मानसिक रोगों के शिकार भी होते चले जाते हैं। यह अवस्था उनके व्यवसायिक तथा सामाजिक संबंधों को प्रभावित करती है। इंटरनेट के आने के साथ ही एक वृहद दुनिया हमारे सामने खुल गई है। ज्यादातर व्यक्ति कोई भी समस्या होने पर तुरंत उसका हल गूगल पर ढूंढने लगते हैं। लेकिन गंभीर बात यह है कि इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी प्रामाणिक है या नहीं यह जानना बहुत मुश्किल है। इंटरनेट एक बड़ी टोकरी की तरह है और हमें यह नहीं मालूम कि उसके अंदर असली मोती है या नकली। गलत तथा अधूरी जानकारी किसी भी समस्या को और अधिक जटिल कर देती है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वे स्वयं भी यह नहीं जान सकते हैं कि उन्होंने जो इंटरनेट पर पड़ा है वह अधूरा सत्य अथवा गलत है।
शादी के पश्चात सेक्स के साथ साथ, शादी पूर्व सेक्स भी आम बात होती जा रही है। सेक्स छुप कर किया जाए अथवा विवाह के बाद, जो बात सब को सबसे ज्यादा परेशान करती है वह है गर्भधारण का डर। बिना उचित तैयारी के बच्चे हो जाने का डर सबको सताता है, खास तौर से यदि विवाह पूर्व गर्भ ठहर जाए तो। सेक्स करते समय यदि गर्भ ठहरने का संशय रहेगा तो भी दोनों सेक्स का उचित आनंद नहीं ले पाएंगे। यह भी उनके बीच विवाद तथा मानसिक असंतुलन का कारण बन जाता है। परिवार नियोजन के सभी उपाय बहुत ही सहजता एवं सरलता से उपलब्ध हैं। जरूरी है उनके बारे में जानकारी होने का। यदि किसी उचित महिला चिकित्सक अथवा चिकित्सक से बिना झिझके हम मिले तो सारी जानकारियां आसानी से जान सकते हैं। अगर भविष्य में उनसे कोई समस्या उत्पन्न होती है तो चिकित्सक से मिलकर उसका निवारण भी कर सकते हैं। झिझक छोड़कर चिकित्सक या परिवार नियोजन कर्मचारी से मिलना इसका सही हल है। अगर चिकित्सक से मिलना संभव ना हो तो किसी प्रामाणिक पुस्तक को पढ़कर भी हम इस समस्या का हल किसी हद तक ढूंढ सकते हैं।
दोस्तों से बात करते हुए या गलत साहित्य पढ़कर लड़के कुछ संशय अपने मन में बैठा लेते हैं। इसमें प्रमुख है लिंग के आकार के बारे में। ब्लू फिल्म कुछ इस तरह वीडियो बनाती हैं कि पुरुष का लिंग काफी बड़ा नजर आता है। दोस्तों से बातचीत में भी प्रमुख चर्चा लिंग के आकार को लेकर होती है। लड़कों में अपने लिंग को लेकर भय उत्पन्न हो जाता है कि उनका लिंग कम आकार का है। हांलाकि इस बात का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है। संभोग में लिंग की लंबाई का बहुत अधिक महत्व नहीं है। लिंग का केवल ऊपरी भाग ही संतुष्टि के लिए आवश्यक होता है। आकार को लेकर मन में अगर कोई भ्रांति है तो उचित परामर्श द्वारा उसको दूर किया जा सकता है। दुख की बात यह है कि ज्यादातर पुरुष अंदर ही अंदर परेशान होते रहते हैं तथा खुलकर इस पर चर्चा नहीं करते हैं। अगर दिमाग में कोई बात पैठकर जाए तो उसे सही करना टेढ़ी खीर हो जाता है। पुरुषों को किसी योग्य सेक्सोलॉजिस्ट से मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ लेना चाहिए, अन्यथा उनकी सेक्स लाइफ को आगे चलकर नुकसान पहुंच सकता है।
इसी तरह लड़कियों अथवा महिलाओं में सेक्स को लेकर अपनी कई उत्सुकतायें होती हैं। उनको भी उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है। झिझक तथा शर्म उन्हें कुछ भी जानने से रोक देती है। सबसे प्रमुख तथ्य है कि महिलाएं सोचती हैं कि सेक्स के समय जो कुछ करना है वह केवल पुरुष को ही करना है उन्हें केवल चुपचाप लेटी रहना है। यह तथ्य भी आगे चलकर विवाद का एक प्रमुख बिंदु बन जाता है। सेक्स का आनंद दोनों लोगों के लिए है। पुरुष के साथ-साथ महिला को भी अपनी भावनाएं जताने का पूरा हक है। यदि महिला पुरुष का साथ देगी तो सेक्स का आनंद बढ़ सकता है तथा यह अधिक संतुष्टि कारक होगा। झिझक छोड़कर बिना किसी पूर्वाग्रह से उन्हें सेक्स का आनंद लेना चाहिए।
सेक्स पाप नहीं है। बचपन से ही हमारे समाज में, परिवार में इसको अच्छी तरह से नहीं देखा जाता है। कोई भी इसके संबंध में चर्चा भी नहीं करना चाहता। वास्तव में सेक्स भी शरीर की अन्य जरूरतों की तरह ही है। सेक्स के बारे में सोचते समय या सेक्स करते समय किसी पापबोध से ग्रसित नहीं रहना चाहिए। शरीर की अन्य क्रियाओं के साथ-साथ यह भी एक आवश्यकता है। सेक्स के बारे में प्रमुख परेशानी होती है जानकारी के अभाव से। सरकार ने अब कुछ स्कूलों में सेक्स एजुकेशन प्रारंभ भी करवाई है। इसका समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
पुरुषों में अपने आप को लेकर एक संशय रहता है कि क्या वे अपनी स्त्री को पूर्णतया संतुष्ट कर पाएंगे। क्या वे उचित समय तक सेक्स कर सकते हैं। सेक्स करने से पहले इस तरह के विचार उन्हें प्रभावित कर सकते हैं। इन विचारों को सकारात्मक लेने की जगह उल्टा सीधा सोचने लगते हैं तथा निराशावादी विचारों से घिर जाते हैं। किसी से सही मार्गदर्शन ना मिलने के कारण समस्या और अधिक गंभीर होती जाती है। यहां तक कि वह सेक्स करने से भी दूर भागने लगते हैं। सेक्स के लिए एक सकारात्मक रखना अति आवश्यक है। अपने प्रदर्शन तथा ऊर्जा को लेकर संशय ना करें। अगर आप नकारात्मक विचारों से ही घिरे रहेंगे तो इससे बाहर निकलना अत्यंत मुश्किल है। समय रहते एक योग्य सेक्सोलॉजिस्ट आपकी सहायता कर सकता है तथा इस स्तिथि से आपको उबार सकता है।
अपनी जीवन शैली को स्वस्थ रखें। याद रखें कि एक स्वस्थ शरीर स्वस्थ सेक्स के लिए आवश्यक है। अपने वजन को बढ़ने ना दें। अगर वजन बढ़ गया है इसको खानपान तथा कसरत से कम कर सकते हैं। प्रतिदिन 5 किलोमीटर टहलें। यह आपके शरीर में नवीन ऊर्जा भर देगा। अपने ब्लड प्रेशर तथा डायबिटीज को सही रखें तथा उसकी दवाइयां नियमित रूप से लेते रहें। धूम्रपान, शराब के सेवन से दूर रहें। जहां तक संभव हो फास्ट फूड का सेवन ना करें। मैदा और चीनी का जहाँ तक हो सेवन ना करें। गुड़ का प्रयोग अधिक उचित है। योग भी शरीर को ऊर्जावान बनाने में सहायता करता है।
सेक्स को एक कार्य की तरह ना समझें। स्वस्थ शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में यह मददगार है। सेक्स के समय कई हार्मोन शरीर में निकलते हैं जो हमारे लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं।
कभी-कभी संभोग करते समय दर्द का अनुभव होता है। इससे बचने के लिए लोग संभोग ही नहीं करते हैं तथा मानसिक अवसाद के शिकार हो जाते हैं। यह भी अन्य लोगों की तरह एक रोग ही है। किसी शल्य चिकित्सक, सेक्सोलॉजिस्ट तथा स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा इसका तुरंत निदान संभव है। किसी भी बात को अपने अंदर दबाकर ना रखें। हर समस्या का उचित समाधान संभव है। जरूरत है सही समय पर सही सलाह को लेने का।
सेक्स करने से पहले अपने साथी के साथ समय बिताना तथा बातचीत करना भी अत्यंत आवश्यक है। सेक्स के समय एक दूसरे को समझने के लिए थोड़ा समय देना चाहिए, केवल निपटाने के लिए सेक्स ना करें।
सेक्स भी शरीर की एक आवश्यकता है, जानकारियों का अभाव हमें कुछ परेशानी में डाल सकता है। यदि कोई कमी है भी तो उसका उचित इलाज संभव है।
सकारात्मक सोच हमारे शरीर को सदैव ऊर्जावान रखती है।
सदैव प्रसन्न रहें तथा दूसरों को भी प्रसन्न रखें, यही एक सफल जीवन का मूल मंत्र है।